Thursday, January 31, 2008

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में फातिमा भुट्टो की दो मुद्राएँ




फातिमा बोलते हुए , दूसरी तस्वीर में विलियम डेलरिम्पल के साथ

Wednesday, January 30, 2008

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आमिर खान और अनुष्का शंकर










आमिर बच्चों को ओटोग्राफ देते हुए ,सितार बजाती अनुष्का शंकर और फिर आमिर के साथ बात करती शोमा चौधरी

Thursday, January 10, 2008

मेरे साहिर से कहो




अब मुझे आज़ाद करे


तसलीमा ,बेनजीर और अब किरण बेदी ....भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक एकता को इस मायने में सलाम करने को जी चाहता है कि सियासी सरहदों के बावजूद यहाँ तस्लीमाओं, बेनजीरों,किरण बेदियों, आंग सान सू कियों ,मेघा पाटकरों के साथ एक सा सुलूक होता है !क्या अद्भुत समानता है !क्या बुनियादी लोकतंत्र है !क्या मजाल कि रत्ती भर भी इधर का उधर हों जाये ?मुझे कात्यायनी की कविता याद आती है -
"जब भी नज़र डालती हूँ /इस अँधेरे विस्तार पर कौंधती है अनगिन रोशनियाँ /फैलती हुई/चमकदार धब्बों मी बदलती हुई /अनगिनत मानावाकृतियाँ दीखती हैं क्षितिज पर /सुनाई पड़ती हैं /बस आवाजें ही आवाजें ॥"


कोलाहल के बीच गूंजते सन्नाटे की धुन जिन कानों तक पहुचती हैं ,वी भी आखिरकार बहरे से क्यों हों जाते हैं ,येही सवाल यहाँ खडा होता है बरगद की तरह .सवाल और भी खडे होते हैं जो जवाब मांगते हैं -क्यों अरूसा आलम को सरहद पार के किसी विपरीत लिंगी विधर्मी से दोस्ती का हक नही हैं ?क्यों जगजाहिर काबिल महिला पुलिस अफसर को मातहत और अपेक्षाकृत रूप से कमज़ोर अफसर के सामने बौना कर दिया जाता है?क्यों मीडिया वालों और आम आदमी को जान और अस्मिता बचने को दर दर भटकती तसलीमा के चेहरे का विषाद नजाए नहीं आता ?क्यों ये पढा और छपा जाना ज़रूरी है कि उसने जयपुर मी अपने पुरुष मित्र के साथ एक ही कमरे में रात गुजारी ?ये सारे सवाल हमें खुद से पूछने चाहिऐ , इतना ही नही लगे हाथ यह सवाल भी हमें अपने आप से पूछना लाजमी है सरपंच पति आज भी सरपंच से ज़्यादा ताक़तवर क्यों है?क्यों हमारे बहुत से घरों में आज भी मताव्पूर्ण मसलों पर औरतों की राय को 'औरत की राय 'कह्का खारिज कर दिया जाता है?क्यों किसी भी प्रभावी ,मताव्पूर्ण या लोकप्रिय महिला का कद चुपके से आँख दबाकर आखिरी हथियार के रूप में उसके चरित्र पर सवालिया निशान लगाकर बौना कर देने का 'मर्दाना 'काम अक्सर अंजाम दिया जाता है ?


बड़ी मासूम से विडम्बना ये है जनाब कि इन सवालों के वजहात से भी हम अच्छे से वाकिफ हैं और कमाल ये भी है कि इन सवालों के जवाब इन सवालों में ही छुपे हैं.ये जानते हुए कि मुठ्ठी भर लोग अक्सर खुद से पूछते हैं, ये सवालों की सौगात आप सब जवाबों के जानकारों के नाम परवीन शाकिर के शब्दों के साथ -


"उसकी मुठ्ठी में बहुत रोज़ रहा मेरा वजूद,


मेरे साहिर से कहो अब मुझे आज़ाद करे ."