Friday, May 30, 2008

रेत से उठती आग


राजस्थान बिहार हो गया है ,इसलिए नहीं कि बीमारू राज्यों में और पिछड़ रहा है,राजस्थान यूपी हो गया है इसलिए नहीं कि मायावती अपने हस्तमेघ यज्ञ की तैयारी कर रही हैं ,आरक्षण का सुंदर सपना एक कुरूप संसार का निर्माण कर रहा है ,हम जातीय संघर्ष के कगार पर खड़े हैं ,गुर्जरों को आरक्षण की घोषणा होते ही मीणा युद्ध की दुन्दुभि बजा देंगे ,तीन दिन पहले ठीक ग्यारह बजे जब दफ्तर में अपना काम शुरू कर रहा था एक एसएमएस ने विचलित कर दिया ,एक अज्ञात नंबर से था वसुन्धरा राजे की प्रशंसा करते हुए गुर्जरों के आरक्षण के ख़िलाफ़ और उनके 'देशद्रोहात्मक 'कार्यों की आलोचना करते हुए कहा गया कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त..यानी ...इस नासमझी को क्या कहें जब हमें जातियाँ परस्पर दुश्मन नज़र आने लगी हैं॥

आरक्षण से बात शुरू करें जब 1932 में मेकडोनाल्ड अवार्ड जिसे कम्युनल अवार्ड भी कहा गया , के तहत सिख, मुस्लिम और दलित आरक्षण की बात आयी तो गांधी बाबा ने पूना जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके बाद भीमराव अम्बेडकर और गांधी के बीच पूना समझौता हुआ गांधी बाबा ने कम्युनल अवार्ड से ज़्यादा आरक्षण दलितों को दिया पर मूल भावना ये रही की हमें अंग्रेज क्यों लड़वायें या हम आपस में तय कर लें.यानी सोहार्द कायम रहे ,चाहे इस बात के लिए गांधी बाबा की आलोचना कर लें कि वो जन्म आधारित जाति व्यवस्था के समर्थक है पर जातीय सौहार्द तो उनके दर्शन के मूल में है ही ।

चलिए अब इतिहास से वर्तमान में आ जायें मंडल से जो सकारात्मक मिला जो मिला पर आग लगी सब झुलसे पर राजस्थान कमोबेश अछूता रहा ,अब बात करें जाट आरक्षण आन्दोलन की ,सामाजिक आर्थिक आधार पर जाटों का बहुत बड़ा वर्ग सरकारी मदद का हक़दार था और है ,जिस तरह बाकी जातियों में भी है पर जो मुहिम शुरू हुयी उसके नतीजे जाट आन्दोलन के मुखियाओं विशेषकर माननीय ज्ञानप्रकाश पिलानिया ने भी नहीं सोचे होंगे ,

किस तरह सत्ता को विचलित कर आरक्षण हासिल किया जाए और उसके लिए किसी भी हद तक चले जायें पर इस रास्ते में आपस की लड़ाई को कैसे रोकें..हित तो टकरा रहे हैं यकीनन टकरा रहे हैं ,जाटों की राजपूतों से एक परम्परागत टकराव की स्थिति रही है ,राजपूतों के आरक्षण आन्दोलन के मूल में भी ये बात रही होगी ,ब्राह्मण भी कूद पड़े..पर आरक्षण का लड्डू किस किस को मिले ,एस टी का लड्डू ही फिलहाल झगडे की जड़ है, ओ बी सी के लड्डू के लिए मूल ओ बी सी और जाटों के बीच का द्वंद्व भी याद कर लीजिये।

अब देखिये ना सरकार भी दोराहे पे है या कहे इधर कुआ उधर खाई ,गुर्जरों को दे तो मीणा नाराज़ ,नहीं दे तो गुर्जर नाक में दम किए हुए ही हैं ,इस पहलू को नज़र अंदाज़ कर दें जो मुमकिन नहीं ,तो ज़रा सोचिये राजस्थान का क्या हश्र होना है एक शांत प्रदेश की छवि तो बम धमाकों से क्षत विक्षत हो चुकी है ,और जत्तीय संघर्ष की यूपी बिहार की तथाकथित छवि का संस्करण बनना क्या हमे चुपचाप सहन करना चाहिए,देखना चाहिए,क्या आने वाले समयों में जातीय चेतना और नहीं बढेगी , अल्पसंख्यक जातियों में असुरक्षा का बोध नहीं जागेगा जैसा मुस्लिमों में गाहे -बगाहे सुनने को मिलता है और फ़िर लामबंद होने को 'हमारी जाति खतरे में है' के नारे बुलंद नहीं होंगे..आमीन नहीं कहूंगा ,खुदा ना करें ऐसा हो क्योंकि ये दर्द और आशंका एक राजस्थानी होने के नाते नहीं है क्योंकि हमारे आसपास कितने ही लोग हैं जो राजस्थान के अमन और शान्ति के माहौल के कारन यहाँ खुश हैं चाहे वे मूलत कहीं और से हैं , एक बार यहाँ आए और फ़िर यहीं के होकर रह गए तो फ़िर जन्मना और कर्मणा दोनों रूपों में राजस्थानी लोगों के चिंता करने का समय है,मुझे कुछ बरस पहले का एक कथन याद आ रहा है जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वर्तमान अध्यक्ष सुखदेव थोराट का है ,जब वे इस पद पर नहीं थे , उन्होंने एक लेख में कहा था कि 'भारत में आर्थिक स्तर पर जाति व्यवस्था ख़त्म हो चुकी है और सामाजिक स्तर पर इसका ख़त्म होना लगभग नामुमकिन है'..राजस्थान के हालत भी यही जाहिर करते हैं ना सिर्फ़ कायम है और रहेगी, इसमें बुराई भी नहीं है पर सवाल तो आपसी सौहार्द का है, क्या उसे हम बचाए रख पाएंगे!.

Wednesday, May 28, 2008

माजरत के साथ


एक तो चेन्नई वाला किस्सा पूरा नहीं कर पाया हूँ और फिर दूसरे किस्से बन ने शुरू हों गए ,जिन्दगी है ही ऐसी कमबख्त ..जितना समझने और सुलझाने की कोशिश करता हूँ उतनी ही उलझती जाती है ,समझ से परे होती नज़र आती है ,महान या कहूं भयंकर वाली कुंठा के दौर में हूँ ..अवसाद है पीड़ा है .घुटता मन है -बालमन ,उसके हठ हैं ,राजेश रेड्डी की ग़ज़ल का मिसरा याद करूं तो 'या तो इसे सब कुछ ही चाहिए या कुछ भी नहीं',
...न कर पाने ,ना हों पाने की छटपटाहट है ..जो हो रहा है उसे ना रोक पाने की छटपटाहट है ..जिन्दगी एक मुअम्मा हो गयी है जावेद अख्तर साहेब को याद करते हुए कहूं तो॥


कितना कुछ गड्ड मड्ड सा लगता है ,कई बार बनावटीपन से कोफ्त होती है तो कई बार ये बड़ा सुहाना लगता है ,सच्चाई कई बार बहुत गर्व करवाती है कई बार कुंठा में डालती है ,तर्क की दुनिया में जीते हुए तर्क की सबसे बुरी बात बेहद परेशान करती है कि उसे दोनों तरफ़ उसी प्रकार खडा किया जा सकता है ,किया भी है ..फिर लगता है कि तर्क अहमियत क्या है ..आखिर होना क्या चाहिए ,दिल की सुनें तो तर्क को भूल जायें या कि तर्क को मानें तो दिल को..

Saturday, May 17, 2008

तसलीमा नसरीन की एक कविता





Who cares if I am sitting here alone
No one and I don't give a damn
Because I am what I am
I am alone,I am no one
Just an eccentric minority
by himself on a bench
Doing nothing with
everything on my mind
And still the world around
me continues to go by
While I linger in this meditation
Feeling as though I would
lose my mind at any moment
Only my solitude is here by my side
Only my solitude is helping me to cope with myself.

Wednesday, May 14, 2008

जीओ जयपुर हजारों साल



ग़ालिब का एक मिसरा है - न होता मैं तो क्या होता


सोचा तो ये था कि चेन्नई के यात्रा संस्मरणनुमा भडास प्रकरण को पूरा करूंगा पर अपने शहर को यूं आतंकवाद के जद में घिरा पाकर स्तब्ध हूँ ,कल शाम से अनबोला सा हूँ ,मेरा शहर भी अब मुम्बई की तरह हादसों का शहर हों गया और ये कहते कोई गर्वानुभुति नही हों रही है। डेढ़ दशक से जिस शहर की आबो हवा में साँस ले रहा हूँ ,जो साँस की तरह है ,लाख बुराई कर लूँ,इसके बिना जीने की कल्पना नहीं कर पाता...उस शहर की शान्ति और खुशहाली को नज़र लग गयी ,अगर शहर के लोग माफ़ करें तो कहूंगा ख़ुद हमारी ही नज़र तो कहीं नहीं लग गई -राजस्थानी में कहावत है- 'सराही खिचडी दांत लागे ',या 'सरायो टाबर बिगड़ ज्यावे' इस दर्दनाक शर्मनाक हादसे ने जहाँ सरकार की नाकाबलियत को जाहिर किया वहीं शहर की एकता जिन्दादिली और मानवीयता से भी हमारा परिचय करवाया है ...

कल शाम ऑफिस में था राजस्थान पत्रिका के कार्टूनिस्ट अभिषेक भइया से लगभग उसी वक्त जब ये धमाके हो रहे थे फ़ोन पर बतिया रहा था तो वो मेरे ब्लॉग की पिछली पोस्ट में जयपुर के मौसम को प्यारा बताने पर असहमति जताते हुए कह रहे थे ' जयपुर में मौसम को छोड़कर सब अच्छा है,प्यारा है ',...वाकई ,पर अब एक दाग लग गया है इस चाँद में ...

अपने तकरीबन डेढ़ दशक के जयपुर प्रवास में कभी अपनी माँ को सिर्फ़ यह और इस तरह कहने के लिए फ़ोन नहीं किया कि 'मैं ठीक हूँ, कोई चिंता ना करें ' ...शुक्र है यहाँ से ५०० किलोमीटर दूर बैठी मेरी माँ ने तब तक (तकरीबन ८ बजे )टीवी नहीं ऑन किया था.. और पापा इवनिंग वॉक पर गए हुए थे ... वरना वो टीवी के सामने ही होते और...!!!


कव्वाल दोस्त फरीद साबरी आज कह रहे थे 'दुष्यंत भाई इस शहर को अमन पसंद ,शांत मानते रहे है,मुम्बई ना बसकर यहाँ रहकर कम कमाया, पर सुकून से रहे ...पर ये क्या हो गया ऐसे हादसे का तो कभी ख्याल ही नहीं आया...अल्लाह सबको सलामत रखे ',उन्होंने एक शेर सुनाया -'घर से निकलो नाम पता जेब में रखकर ,हादसे चेहरे की पहचान मिटा देते हैं...'


एक बात और बांटना चाहता हूँ कि मुझे अपने होने की खुशी का एहसास या कहूं दुनिया में थोडा बहुत ज़रूरी होने का एहसास भी इस दिन हुआ ,ये काला दिन मेरे लिए सुबह से ख़ास था,अपने जन्म दिन के दिन अपने शहर को इस तरह के हादसे में घिरा हुआ देखना किस तरह की फीलिंग दे सकता है, कल्पना करें..ख़ुद को कोसा भी..पर सुबह से शाम साढ़े सात बजे तक जितने लोगों ने याद नहीं किया , उसके बाद याद करने वालों की तादाद कहीं ज़्यादा थी ,इतने कम तकरीबन दो घंटे के अंतराल में इतने फ़ोन मुझे अब तक की इकतीस साल की जिन्दगी में कभी नहीं आए ..सब कुशल क्षेम पूछने के लिए ..कोई सेलिब्रिटी नही बना पर जो फीलिंग हुई उसे क्या नाम दूँ..भारत के हर कोने से कालीकट से जम्मू ,शिलोंग ,महाराष्ट्र ,गुजरात ,कोलकाता, हैदराबाद ,बेंगलोर ,दिल्ली,गोहाटी ,अम्बाला ,ग्वालियर, यहाँ तक कि निर्मम मानी जाने वाली फ़िल्म इंडस्ट्री के मित्रों ने भी कुशलता की जानकारी ली, कोपेनहेगन ,लंदन,कुवैत, केलिफोर्निया, मेसाचुसेट्स , टोरंटो ,दुबई तक से फ़ोन आए तो इस स्नेह और मुहब्बत से मेरी हालत क्या हो गयी कैसे बयान करूं ,मैं झुक गया ...पर कुछ दोस्तों और मेरी उम्मीद के मुताबिक एक फोन नहीं आया ...मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता ..छोडिये ना ...'उसकी दुआएं हमेशा साथ चलती हैं,मैं तन्हाई में भी तनहा नहीं होता..'

अपने जन्मदिन पर ईश्वर से ऐसे तोहफे(!) की कामना कभी नही की, न करूंगा ..मेरे शहर के लोग खुश रहे , दुनिया खुश रहे आबाद रहे ...अमन चैन हो..... आमीन

Monday, May 12, 2008

चेन्नई मेरी चेन्नई -2

तो माजरत के साथ फ़िर हाजिर हूँ,सेंतोमे की जगह मेरा सेंट थॉमस चर्च पहुँचना ही अव्वल तो मेरे बेवकूफ बनने की दास्तान है पर मेरा वहाँ पहुचना दिलचस्प इस मायने में है कि एक हादसा पेश आया , चलिए सिलसिलेवार सुनाता हूँ

इग्मोर से लोकल ट्रेन पकड़ने को सेंट थॉमस पहुचाने के लिए सबसे बेहतर बताया गया, चेटपेट से ऑटो लिया यहाँ पहला हादिसा पेश आया ऑटो वाले भाई को अंगरेजी नहीं आती थी और मुझे तमिल का एक अक्षर ..महान भारत की महान विविधता ...गुलज़ार की 'खामोशी' से संजय लीला भंसाली की 'ब्लेक' तक की सारी फिल्मों के अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए किसी तरह मैं उसे इग्मोर चलने को तैयार कर पाया,हालांकि अभी भी मुझे ख़ुद पे या उस पे विश्वास नहीं था कि मैंने उसे ठीक से समझा दिया याकि उसे ठीक से समझ में आगया ,और वो मुझे वहाँ पहुंचा देगा जहाँ मुझे जाना है...इग्मोरे पहुच कर जान में जान आयी और उसे तीस रुपये देकर मैं स्टेशन में दाखिल हुआ ,पता चला सेंट थॉमस जाने के लिए गिनडी तक ट्रेन है , ५ रुपये का टिकट लिया और सवार हो गया ,दिल्ली की मेट्रो और मुम्बई की लोकल से अलग ,बिल्कुल अलग सा माहौल ...चौथा या पांचवां स्टेशन गिनडी आया ,थोड़ी धक्का मुक्की हुयी ...भीड़ में पसीने की बदबू थी और उसका विशेष दक्षिण भारतीय फ्लेवर ...जिसकी कतई आदत नहीं थी ॥उस से बचकर निकालना एक यातना से निकलने जैसे ही था...उतरा ,चार कदम चला था कि भारतीय रेल के अधिकारिओं ने एक बिना टिकट यात्री तो धर दबोचा ,वो उत्तर भारतीय लग रहा था ॥और वो मैं था ...टिकट प्लीज़ ,सुनते ही पूरी सभ्यता से रुका और अपनी पॉकेट में हाथ डाला देखता हूँ टिकट नहीं है ,वो महोदय बोले ज़रा आराम से कर लें ॥मैंने तुरत फुरत सारी पॉकेट चेक कर डाली , मैंने उसे कहा सर मैंने टिकट ली थी पर मुझे नहीं पता वो कहाँ चली गयी ...उसने कहा आपके पास टिकट होनी चाहिए और नहीं है .. मैंने अति विनम्रता से कहा-'ठीक है टिकट तो नहीं है आप चार्ज कर सकते हैं 'मुझे विनम्रता में भलाई नज़र आयी ...उस व्यक्ति ने कहा अन्दर आ जाईये और ट्रेक के साथ के हाल नुमा कमरे की और इशारा किया.. अन्दर बैठे व्यक्ति ने रसीद बनानी शुरू की तो वह व्यक्ति जो मुझे अन्दर लाया था ने फ़िर मुझे मौका दिया कि मैं इत्मीनान से चेक कर लूँ ... मैंने चेक मेरी किसी पॉकेट में टिकट नहीं थी और अपने वोलेट को भी मैं बहुत तसल्ले से देख चुका था...मैंने सब निकाल एक टेबल नुमा जगह पर रख दिया मेरी हालत देखने लायक थी ऑफिसर ने कहा -लाईये २५६ रुपये ,मैंने लगभग अनसुना किया और कहा- एक मिनट और उस कमरे से बाहर निकला, पहला व्यक्ति मेरे साथ इस तरह चल रहा था जैसे मैं कोई जघन्य अपराधी हूँ ..मैंने देखा टिकट नीचे पडा था ..मुझे चैन आया..उस व्यक्ति ने कहा आप सौभाग्यशाली हैं...अन्दर व्यक्ति ने पूछा आप कहाँ से आए हैं मैंने कहा -इग्मोर॥उसने अगला सवाल दागा ताकि कन्फर्मं कर पाये कि वो मेरी ही टिकट है, मैंने कहा -पाँच रुपये का है ', टिकट दरअसल टिकट दिखाने की हडबडी में मेरी जींस की पिछली पॉकेट से वोलेट निकालते हुए नीचे गिर गया था ,जो वोलेट से चिपक गया था , जवाब आया-'आप जा सकते हैं ',और मुझे छोड़ दिया गया..ऐसे हादसे की कभी कल्पना नहीं की थी ,पर बाद में याद करके बड़ा मज़ा आया

आज इतना ही ....

Saturday, May 10, 2008

चेन्नई मेरी चेन्नई

थार से समंदर तक .....

माफी चाहता हूँ कि बहुत दिन बाद लिख पा रहा हूँ इस बहाने पहली बार सही रूप में अंदाजा हुआ कि मेरे इस भडास निकालने के ज़रिये को कितने लोग स्नेह भाव से पढ़ते हैं ,उन तमाम मित्रों ने फोन करके कहा कि यार बहुत दिन होगये गोली दिए हुए अब तो लिख दो कि क्या गुल खिलाये चेन्नई में ,ये किस जिज्ञासा के कारण था ये वो जानें पर जिन्होंने कभी मेरा ब्लॉग देखा भी होगा ये एहसास मुझे नहीं था ,खैर हाजिर हूँ ,चेन्नई से लौटने के दो हफ्ते बाद चेन्नई की यादों में फ़िर एक बार॥

चेन्नई यानी- साई ,मित्रा ,कविता,हेमा,सपना, हरिक्रिशन, श्रीलेखा,किट,पद्माजी ,वेंकटेश ,लैण्ड मार्क और हिगिन बोथम वाली बुक शौप्स और मरीना बीच ...कितना कुछ तैर रहा है आँखों के आगे ...चेन्नई यूं दूसरी बार गया था साल भर पहले इसी तरह के प्रोग्राम में गया था ,वो यादें थी ही ,इस बार जाते हुए दिल्ली से किसी शायर के लफ्जों में कहूं तो 'मेरे महबूब की दिल्ली ' से तमिलनाडु एक्सप्रेस के थर्ड ऐ सी में जाने का ख्याल भी यूं ही आ गया चलो लालू की सेवाओं का जायजा ले लिया जाए ,

१४ की शाम को ट्रेन थी ,जे एन यू में सुधीर से मिलने की इच्छा बहुत दिनों से थी तो सोचा चलो कुछ पहले चल के उस माहौल में जी लूँ जो मेरा अधूरा ख्वाब है ॥सुधीर से मिलने में हमेशा ये छदम इच्छा रहती ही हैं ॥और इसे वो भी जानता है कि जे एन यू उसके 'दुष्यंत भैया' की कमजोरी है ॥खैर चेन्नई के इस सफर में २८ घंटे की यात्रा में में उतार से दक्षिण पूरा हिन्दुस्तान देखना बहुत रोमांचक रहा ,एक दशक इतिहास पढने आधे दशक तक पढ़ने के दौरान जिस भारतीय विविधता का किताबी ज्ञान लिया उसे महसूस किया ये पिछली बार महसूस नही हुया क्योंकि वो गो एयर की एक दुखद विमान यात्रा थी जिसमे दिल्ली एयर पोर्ट से रात ९ बजे उड़कर साडे ग्यारह बजे चेन्नई पहंचाने वाले विमान ने अल सुबह तीन बजे उड़कर पाच बजे चेन्नई की धरती पर उतारा था ,पूरी रात कैसे बीती होगी कल्पना कर सकते हैं ..इस बार शायद एक वजह तो यही थी कि सस्ती विमान यात्रा से ट्रेन अच्छी
खैर ,वास्तविक भारत दर्शन का लुत्फ़ तो आप यकीनन रेल की यात्रा में ही उठा सकते हैं

...चेन्नई के रास्ते में बाला पंडीयान से मुलाक़ात भी दिलचस्प रही ,इन महोदय से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका, वे एक एनजीओ से जुड़े हुए हैं जो किशोरों और युवकों को जीवन मूल्यों के प्रति सजग और सक्रिय करने में लगा हुआ है और देश भर में उसके चेप्टर है यहाँ तक कि जयपुर में भी,बाला से पूछा जयपुर में कब से काम कर रहा है डेढ़ दशक के प्रवास में आज तक सुना नहीं ,, उनसे बतियाते और रविंदर कालिया की किताब ग़ालिब छूटी शराब तथा दर्जन भर हिन्दी अंग्रेजी की मेग्जीनों के साथ सफर गुजारा ,इस्मत चुग़ताई का नोवल 'जिद्दी 'अनपढा ही वापिस आ गया, हाँ जग सुरैया की 'कलकता ऐ सिटी रिमेम्बर्ड ' ज़रूर आधी पढ़ पाया चेन्नई को वर्क-शॉप के अलावा सुबह शाम ही देख सकता था ,


१५ की शाम पहुचा १६ को पूरे दिन फुरसत थी १७ से वर्क-शॉप थी लिहाजा एक लेखक होने का वहम पालने वाला व्यक्ति शहर को एक्सप्लोर करने निकल पडा, भरी गरमी में, अपने शहर गंगानगर की गरमी को याद दिलाने वाली गर्मी ...अपनी साथी मित्रा के शब्दों में 'बर्निंग होट',जहाँ ठहराया गया वहाँ एसी कमरा देने की व्यवस्था अज्ञात कारणों से हमारे लिए नहीं थी..यूं मेरा घर भी ए सी नहीं है पर जयपुर में ज़रूरत भी महसूस नहीं हुई ..वाह मेरे प्यारे जयपुर ..जहाँ का मौसम हमेशा प्यारा होता है ,इस बार तो यहाँ भी गरमी भयानक है ....सेंतोमे चर्च और मरीना बीच देखने का मन बनाया सेंतोमे का इम्प्रेशन ये था कि जीसस का एक शिष्य यहाँ आया ,इम्प्रेशन इसलिए कि सेंतोमे की जगह माउन्ट पर सेंट थॉमस चर्च पहुँच गया वहाँ पहुँचने का किस्सा भी खासा दिलचस्प है आप भी खिलखिलायेंगे , खिलखिलायें ना भी तो मुस्कुराए बिनातो हरगिज नहीं रहेंगे ..उसकी बात कल करूंगा..



Saturday, May 3, 2008

मरीना बीच पर कुछ पल

पिछले दिनों एक मीडिया वर्कशौप में चेन्नई जाना हुआ ,उस यात्रा और उस बीच के कुछ क्षण आपसे बाँट रहा हूँ-फिलहाल वीडियो के ज़रिये फ़िर शब्दों के ज़रिये भी कुछ बाते करूंगा