Monday, December 15, 2008

बधाई पल्लव



प्रिय मित्र पल्लव को भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता की तरफ़ से राष्ट्रिय युवा साहित्यिक पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है ॥एक प्यारे इंसान की अनथक मेहनत और समर्पण का सम्मान है ये..सफर की शुरुआत भर है..यकीन मानिए..अभी कई गढ़ टूटेंगे .. ये भोर की पहली किरण है ..उजाले अभी होने हैं..रोशनी से आंखे चुंधिया ना जाए कहीं..


फिलहाल आत्मीय शुभकामनाएं भाई पल्लव को

पूरी ख़बर यहाँ है

http://qalam1.blogspot.com/

Tuesday, December 9, 2008

ये काला दिन है जब केवल जाट ही किसान है


बात अपने बचपन से शुरू करता हूँ..अपने अध्यापक पिता से बाल सुलभ जिज्ञासा में पूछा था कि 'पापा गाँव के चौधरी जब ख़ुद खेती नहीं करते खेत तो कोई चौथिया तीजिया पांचिया जोतता है फ़िर ये ख़ुद को किसान कैसे कहते हैं.किसान तो वही होता है ना जो खेती करता है' तब पापा ने कहा था कि 'जो खेती की ज़मीन रखता है वो भी किसान है '
फ़िर हम बड़े हुए इतिहास को ओढा बिछाया तो अंग्रेजों के ज़माने को पढ़ते हुए पता चला कि फार्मर और पीजेंट नाम के दो शब्द होते हैं जो बताते हैं कि ज़मीन किसी की,खेती कोई और करता है.. मेरा जन्म गंगानगर का है सरसब्ज इलाका ..और मेरा ननिहाल हरियाणा में है मेरा ननिहाल देवीलाल की बेटी का ससुराल है लिहाजा ..बचपन में किसान राजनीति के पुरोधा देवीलाल को करीब से देखा है...किसान राजनीति के सबसे बौद्धिक और प्रभावी नेता चरण सिंह के इलाके की लडकी से पहला सर्व विदित और दो तरफा प्रेम हुआ,उसके मुंह और अपने अध्ययन अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि इन दोनों किसान नेताओं ने कभी जाट पहचान की बात नहीं की ,किसान की बात की..उसके नाम पर वोट मांगे..ऐनक का निशान होगा मुख्यमंत्री किसान होगा के नारे अब भी देवीलाल का बेटा देता है ...क्योंकि देवीलाल ने कहा था..'लोक राज लोक लाज से चलता है' तो लोकलाज तो जाति के आधार पे बाँटने की बात को स्वीकार कर ही नहीं सकती है ...
अब मुद्दे की बात पे आ जायें किसी जाति के मुख्यमंत्री बनने की मांग कितनी अलोकतांत्रिक है ...कल लोकतंत्र की जीत की बात पे बल्लियों उछल रहा था मैं ...आज कांग्रेस के उस अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष मुख्यमंत्री पद के उमीदवार को इस बात पे खारिज किया जाता है कि कि जाट ही मुख्यमंत्री होना चाहिए ..जाति की राजनीति का हश्र नाथूराम मिर्धा से राजाराम मील और सुरेश मिश्रा से भंवरलाल शर्मा तक सब का हम देख चुके हैं...
सीमा प्रहरी सैनिक के कल्याण के लिए पद्मश्री पाने वाला कैसे राष्ट्र हित पर जाति हित को बड़ा ठहरा सकता है ये भी सोचनीय है ...एक हद तक भारतीय समाज का चरित्र जातिवादी है और रहेगा पर राजनीति समाज से चले तो परिणाम भयावह होंगे ..कहीं न कहीं इसमें वसुंधरा के बोए बीजों का फल है ..वरना उनसे पूछे कि जब यहाँ जाट को सीएम बनने को लामबंद हो तो अगले चुनाव में गैर जाट मतदाता के सामने कैसे वोट मांगेगे ..? क्या शर्म नहीं आयेगी.? .क्या अपनी सीट भी निकाल लेंगे अगर इस आधार पर सारे गैर जाट उनके ख़िलाफ़ लामबंद हो जाए ..?अगर खेती करने वाले को ही किसान कहा जाए तो बेहतर है किसी दलित तीजिये पान्चिये चौथिये को मुख्यमंत्री के लिए नामित किया जाना चाहिए और इस आधार पर तो बी एस पी के 6 विधायक भी साथ आ जायेंगे...जाति के नाम पे लड़वाने के लिए वसुंधरा को कटघरे में खडा करने वाले ये कोनसा सदभाव फैला रहे हैं ..मेरी समझ से बाहर है ..पर इतना समझ में आता है कि बचपन का पाठ नए अर्थ ले रहा है किसान मतलब सिर्फ़ जाट चाहे वो खेती करे या नहीं..