Saturday, January 17, 2009

मेरा भी है कश्मीर


याद प्योम
एक हफ्ते से मैं कश्मीर मय हूँ हालाँकि जिस काम से वाबस्ता हूँ उसके तहत कश्मीर अंक की योजना मेरे जेहन में तभी से आकार लेने लगी थी जब उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में वहाँ निजाम बदलने की ख़बर आयी ॥कश्मीर में निजाम का सिर्फ़ चेहरा बदला है या वाकई कुछ बदलाव आयेगा ये फैसला तो वक्त ही करेगा पर मेरे हम लोग के कश्मीर अंक की पृष्ठभूमि में ये परिवर्तन था और फ़िर प्रेमचंद गांधी जी के विशेष सहयोग के साथ इस अंक को मूर्त रूप दे पाया।बचपन का कश्मीर याद आ रहा है जब तब लगभग अनजान से कुपवाडा का बशीर गंगानगर के गांवों में शॉलें बेचने आता था मुझे आज भी याद है कि काउ ओप रेतिव की चेतक छाप कॉपी में आखरी पन्ने पे बशीर का पता लिख रख लिया था और जब बड़ा हुआ और कश्मीर और कुपवाडा को जन तब तक चेतक चाप कॉपी किसी रद्दी वाले के यहाँ पहुचकर लिफाफा बन चुकी होगी ॥पर आज भी वो नोस्टाल्जिया का कश्मीर और बचपन का बशीर मेरी यादों में है ... ॥मशहूर डोगरी लेखिका पद्मा सचदेव जी का अपार स्नेह मुझ पर रहा है कश्मीर अंक की योजना के साथ ख्याल आया उनसे लिखवा लूँ पर उनकी तबीयत ठीक नहीं थी फ़िर उनके सुझाव पर चंद्रकांता जी से लिखवाया ,पद्मा जी ने ख़ुद चंद्रकांता जी को फोन करके कहा कि दुष्यंत का फोन आयेगा तो ऐसे प्रकरण मुझ जैसे के लिए ज़मीन से उछलने के लिए काफी हैं.....और चंद्रकांता जी ने मेरे लिए लिखा भी और चमन लाल सप्रू जी से खाने पर लिखवाया भी ....और नाटकीय तरीके से अग्निशेखर जी ने लिखा या कहूं बोला ...जिस दिन वो जम्मू में बैठकर लिखनेवाले थे उन्हें बहुत ज़रूरी काम से दिल्ली आना पडा और फ़िर वे लगातार सफर में रहे पर उनकी कश्मीर पर मुहब्बत और मेरा इसरार या मुझ पर स्नेह कि लिखना और कहना ज़रूर चाहते थे ॥तय किया कि फ़ोन पे मुझे बोलेंगे और मैं रिकॉर्ड करके आलेख तैयार कर लूँगा बुधवार शाम से मुझे जयपुर में दिल्ली की सी सर्दी ने जकड लिया खैर किसी तरह उनके नागपुर से जयपुर की ट्रेन पकड़ने से पहले उन्हें फोन पर पकड़कर मैंने तफसील से बात की ..पर फ़िर मेरी तबीयत अभी संभली नहीं थी ..एक बार सोच लिया यार जाने दो सिर्फ़ चंद्रकांता जी के आलेख को कवर बना लूंगा जब काया ही ठीक नहीं तो किस कायनात की बात कर रहा हूँ ..गांधी जी ने पूछा बात हुई? मैंने कहा कि उन्होंने लिखा तो नहीं पर बात हो गयी उसे ख़ुद ही लिखना है पर मैं लिख नहीं पा रहा हूँ ..खैर मन हुआ और लिखा और इत्तेफकान और उनके यायावरी के मिजाज की वजह से शुक्रवार की सुबह अग्निशेखर शहर में थे वे प्रसिद्द मूर्तिकार हिमा कौल से मिलने आए थे जो यहाँ राष्ट्रीय आयुर्वेदिक संस्थान में अपना इलाज करवा रही हैं ..अग्निशेखर जी उनके लिए कह रहे थे जिन हाथों ने लोहा पत्थर तोडा उन्हें शिथिल देखकर बहुत पीड़ा होती है और ये वाजिब भी है,ये मेरी अग्निशेखर जी पहली मुलाक़ात थी बेहद आत्मीयता और स्नेह से मुलाकात हुई और उनके साथ फिलहाल जयपुर निवासी कश्मीरी गायक वीर कौल से भी ..उनकी पहाडी मासूमियत और बेलागपन..क्या कहने ..दो दिन इन दो कश्मीरियों के साथ और एक पूरा हफ्ता कश्मीर को महसूस करते बीता..पूरे चार पेज के कश्मीर अंक में ..दो कश्मीरियों के साथ में... उन दोनों के लहजे और जुबां में उनके दिल का दर्द साफ देखा सुना सूंघा और महसूस किया जा सकता था ...वीर जी जब अपना एल्बम याद प्योम मुझे दिया और अपने मोबाईल से उस एल्बम का एक गीत सुनाया तो उस आवाज का दर्द मुझे अनबोला कर गया इन दिनों जितना अनबोला रहा हूँ ,शायद ही रहा होऊं..सियासत और आंकडों से इतर संवेदना और संस्कृति के स्तर पर कश्मीर को महसूस करना इस हफ्ते की सबसे बड़ी यादगार घटना हो गयी है और पत्रकारिता के मेरे करियर में इसे याद रखूंगा कल अग्निशेखर जी को जम्मू के लिए विदा करते समय भी मन भारी था और उस वक्त लगभग चुप सा मैं.. ..मैं मौन वक्त के खेल को देख समझने की चेष्टा कर रहा था ...उन्हें ये एहसास नहीं होगा कि इस कश्मीर अंक ने उनके इस फ़ोन और व्यक्तिश सानिध्य के साथ मेरे भीतर कितना और क्या बदलाव पैदा किया है।हालाँकि ये मानता हूँ की यकीनन मुझसे पहले भी कश्मीर पर केंद्रित काम हुए होंगे और मुझसे बेहतर भी होंगे पर यहाँ सिर्फ़ मैं कश्मीर को लेकर अपनी अनुभूतियाँ आपसे बाँट रहा हूँ