गौरव सोलंकी एक युवा कविता का उम्दा नाम है,पर इतनी चौंकाने वाली कविता भी उसने लिख दी होगी ,ये मेरे लिए अचरज की बात है..उस पे बहुत प्यार लाड आया है॥
आप से बाँट रहा हूँ॥
मुलाहिजा फरमाएं और इस बालक को दुआएं और आशीर्वाद दें...
अधूरा नहीं छोड़ा करते पहला चुम्बन
अधूरा नहीं छोड़ा करतेपहला चुम्बन,
जब विद्रोह करती हों,
फड़फड़ाती हों
निर्दोष होठों की बाजुएँ
नहीं बना करते अंग्रेज़,
नहीं कुचला करते उनकी इच्छाएँ
सन सत्तावन के गदर की तरह।
ऊपर पंखा चलता है।
आओ नीचे हम
रजनीगन्धा के फूलों से
छुरियाँ बनाकर
काट डालें अपने चेहरे,
तुम मेरा
मैं तुम्हारा
या तुम मेरा,
मैं अपना!सिपाहियों को मिला है
आदेश भीड़ को घेरने का,
बेचारे सिपाहियों ने चला दी हैं
बेचारी छुट्टी भीड़ पर
बेचारी छोटी छोटी गोलियाँ।
फिर मत कहना
कि अपनी मृत्यु का दिन
मालूम होते हुए भी
मैंने नहीं किया था
तुम्हें सावधान कि
तुम अपना खिलंदड़पना छोड़कर
सोच सको
भावुक होने के विकल्प के बारे में भी।
क्या पता
कि अधूरे छूटे हुए पहले चुम्बन
बन जाते हों आखिरी
इसलिए मन न हो, तो भी
अधूरा नहीं छोड़ा करते
किसी का पहला चुम्बन।
नब्बे साल बाद सच होते हैं
मंगल पाण्डे के शाप।
2 comments:
गौरव होनहार हैं, बहुत बढ़िया लिख रहे हैं. मेरी शुभकामनाऐं उनको.
man na ho
to bhi nahi chhoda karte
kisi ka pahla chumban....
BADIYA HAI, kavi ko badhai...
Post a Comment