Tuesday, August 26, 2008

अब के हम बिछड़े तो....



अहमद फ़राज़ नहीं रहे .....


यकीनन एक बड़ा शायर ..हिन्दुस्तान का या कि पकिस्तान का....नहीं पूरे बर्रे सगीर का ...नहीं ...अदब की दुनिया का एक बड़ा शायर ..लफ्जों से बगावत करता ...

हिन्दुस्तान और पकिस्तान दोनों ही मुल्कों में एक से प्यारे शायर ..वे भारत लगातार आते रहते थे और खास तौर पर बनारस से उनका खासा लगाव था यहां के मुशायरो में वे लगातार हिंदुस्तान और पाकिस्तान की एक जैसी विरासत का हवाला देते थे और एक लंबी मुलाकात में उन्होंने यह भी कहा था कि जिस दिन भारत और पाकिस्तान का संगीत और साहित्य मिल जाएगा उस दिन फौजों की जरूरत नहीं रहेगी। अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने वाले फ़राज़ साब के बारे में दिलचस्प बात यह है कि हिंदुस्तान की फिल्में बहुत पसंद करने के बावजूद कई बार कहने पर भी उन्होंने भारतीय फिल्मों के लिए कोई गीत नहीं लिखा। हालाँकि उनकी कई गजलें फिल्मों में ली गई और खासी मकबूल हुई थी।

बतौर अकीदत कुछ शेर उनके गुनगुना लें ...



अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले

जैसे तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

दूंढ उजड़े हु्ए लोगों में वफ़ा के मोती

ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें


तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें।

या कि एक दूसरी ग़ज़ल के कुछ शेर --

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाये हम

यह भी बहुत है तुझको अगर भूल जाएँ हम

सहरा ऐ जिन्दगी में कोई दूसरा न था

सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदायें हम

इस जिन्दगी में इतनी फरागत किसे नसीब

इतना न याद था कि तुझे भूल जाएँ हम

तू इतने दिल जुदा तो न थी ऐ शबे फिराक

आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएं हम

वो लोग अब कहाँ हैं जो कल कहते थे फ़राज़

है है खुदा न कर्दा तुझे भी रुलाएं हम


मरासिम- सम्बन्ध ,फरागत-चैन ,दिल जुदा -उदास दिल,शबे फिराक -जुदाई की रात,खुदा न कर्दा -खुदा न करे



4 comments:

vipinkizindagi said...

बेहतरीन ...........

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ दुःख की बात है पर सच है....ये ख़बर दोनों मुल्को पे भारी है .....ऐसे अजीम शायर का जाना ......

Udan Tashtari said...

शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!

siddheshwar singh said...

फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि ! नमन!!