प्रभा दीदी का जाना मेरे लिए इसलिए खास है कि उनके द्वारा अनूदित किताब ने मेरी जिन्दगी बदल दी थी.ये सन 1998 की बात है मुझे राजस्थान विश्व विद्यालय के इतिहास विभाग में पढ़ते हुए एक दर्शन विभाग के वरिष्ठ मित्र ने अपनी पहली मुलाकात में एक किताब पढने की सलाह दी और वो थी स्त्री उपेक्षिता ..मूल लेखिका सिमोन द बोउवा ..मूल किताब- द सेकिंड सेक्स ..पाठ्यक्रम की किताबों को तजते हुए तकरीबन तीन दिन में भारी मोटी किताब को पढ़ गया..उन दिनों पढ़ लिया करता था इतना..उसके बाद तो मेरी सोच और जिन्दगी वो यकीनन नहीं थी जो उस किताब को शुरू करने से पहले थी मानता हूँ ये सिमोन का जादू था पर जादूगरी प्रभा जी की भी कम नहीं थी..
फ़िर कुछ वक्त बाद उनका उपन्यास पीली आंधी और छिन्मस्ता पढ़ डाले फ़िर रहा नही गया और लेखिका को पत्र लिख दिया ..जवाब आया जिसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने..लंबा पत्र मिला खुशी हुई कि उन्हें मेरा ख़त पाके खुशी हुई थी..हमवतनी का ख़त अपनी किताबों पर..लगभग मुग्ध भाव का ख़त.फ़िर ये सिलसिला ही चला ..पर एक बात जो पहले ही ख़त में लिखी .दिल को छू गयी..दरअसल ये मेरी दुविधा का निराकरण था .मैंने कहा कि संबोधन क्या दूँ .उम्र में मां समान है.. और लेखन के कारण श्रद्धानवत हूँ ही ..मेडम कहना औपचारिक लग रहा है ..नम लेकर बात करना बदतमीजी तो उन्होंने कहा कि प्रभा दीदी कह सकते हो और आखिर में 'सस्नेह प्रभा दीदी' के शब्द आज भी मेरे मन पर अंकित हैं..
फ़िर फ़ोन पर अनेक बार बात हुई उन्हें खुशी हुई कि उनके अनुवाद से प्रेरित होकर महिला अध्ध्ययाँ में पीएच डी कर रहा हूँ..वो इस बात पे भे बहुत खुश थी कि मैं दर्शन का विद्यार्थी रहा हूँ और स्त्री विमर्श में इतिहास में काम कर रहा हूँ.. जब मैंने अपने विषय से जुड़े दो प्रकाशित शोध आलेख भेजे थे तो उन्होंने उन्हें शब्दश पढ़कर जिज्ञासाएं रखी थीं..उनके दार्शनिक प्रश्नों ने मुझे चोंकाया और मार्गदर्शित किया था ..
वो बहुत उत्सुक थीं कि छप के आने दो ज़रूर पढूंगी ..वो मेरा शोध किताब के रूप में आने के लिए अभी प्रकाशक के पास प्रकाशनाधीन है काश उन्हें ये सुख दे पाता..पिछले साल जब तसलीमा नसरीन जयपुर आयीं थी तो प्रभा दीदी के पुत्र संदीप भूतोडिया आए तो उनके साथ ही तसलीमा से मिला तो प्रभा जी के बारे में संदीप और तसलीमा जी से बातें हुई थीं ..अज तक रूबरू मिलने का मोका नहीं मिला पर किसी के विचारों से मिल के लगता ही नहीं कि उनसे मिला नहीं था.. हर बार फोन पर वही अपनापन..स्नेह और एक सवाल इन दिनों क्या पढ़ रहे हो..
उनका जाना बहुत अस्वाभाविक लग रहा है ..सोचा था उनके हाथों मेरी शोध पुस्तक का लोकार्पण होता...हर बार जब भी फोन करता था तो ये ज़रूर पूछती थीं कि कब आ रही है!
अब वो पूछना नहीं होगा.. मेरे शोध की प्रथम प्रेरणा पुस्तक की अनुवादिका का अवसान मेरे लिए बहुत बड़ा झटका है..
फ़िर कुछ वक्त बाद उनका उपन्यास पीली आंधी और छिन्मस्ता पढ़ डाले फ़िर रहा नही गया और लेखिका को पत्र लिख दिया ..जवाब आया जिसकी उम्मीद नहीं की थी मैंने..लंबा पत्र मिला खुशी हुई कि उन्हें मेरा ख़त पाके खुशी हुई थी..हमवतनी का ख़त अपनी किताबों पर..लगभग मुग्ध भाव का ख़त.फ़िर ये सिलसिला ही चला ..पर एक बात जो पहले ही ख़त में लिखी .दिल को छू गयी..दरअसल ये मेरी दुविधा का निराकरण था .मैंने कहा कि संबोधन क्या दूँ .उम्र में मां समान है.. और लेखन के कारण श्रद्धानवत हूँ ही ..मेडम कहना औपचारिक लग रहा है ..नम लेकर बात करना बदतमीजी तो उन्होंने कहा कि प्रभा दीदी कह सकते हो और आखिर में 'सस्नेह प्रभा दीदी' के शब्द आज भी मेरे मन पर अंकित हैं..
फ़िर फ़ोन पर अनेक बार बात हुई उन्हें खुशी हुई कि उनके अनुवाद से प्रेरित होकर महिला अध्ध्ययाँ में पीएच डी कर रहा हूँ..वो इस बात पे भे बहुत खुश थी कि मैं दर्शन का विद्यार्थी रहा हूँ और स्त्री विमर्श में इतिहास में काम कर रहा हूँ.. जब मैंने अपने विषय से जुड़े दो प्रकाशित शोध आलेख भेजे थे तो उन्होंने उन्हें शब्दश पढ़कर जिज्ञासाएं रखी थीं..उनके दार्शनिक प्रश्नों ने मुझे चोंकाया और मार्गदर्शित किया था ..
वो बहुत उत्सुक थीं कि छप के आने दो ज़रूर पढूंगी ..वो मेरा शोध किताब के रूप में आने के लिए अभी प्रकाशक के पास प्रकाशनाधीन है काश उन्हें ये सुख दे पाता..पिछले साल जब तसलीमा नसरीन जयपुर आयीं थी तो प्रभा दीदी के पुत्र संदीप भूतोडिया आए तो उनके साथ ही तसलीमा से मिला तो प्रभा जी के बारे में संदीप और तसलीमा जी से बातें हुई थीं ..अज तक रूबरू मिलने का मोका नहीं मिला पर किसी के विचारों से मिल के लगता ही नहीं कि उनसे मिला नहीं था.. हर बार फोन पर वही अपनापन..स्नेह और एक सवाल इन दिनों क्या पढ़ रहे हो..
उनका जाना बहुत अस्वाभाविक लग रहा है ..सोचा था उनके हाथों मेरी शोध पुस्तक का लोकार्पण होता...हर बार जब भी फोन करता था तो ये ज़रूर पूछती थीं कि कब आ रही है!
अब वो पूछना नहीं होगा.. मेरे शोध की प्रथम प्रेरणा पुस्तक की अनुवादिका का अवसान मेरे लिए बहुत बड़ा झटका है..
9 comments:
प्रभा जी का जाना वाकई बहुत दुखद है. इसलिए और भी कि हमारे मीडिया ने इस समाचार को पूरी तरह उपेक्षित रखा. आपने बहुत आत्मीयता से उन्हें स्मरण किया है. अपने लेखन में प्रभा जी अद्भुत थीं. अतुलनीय भी.
उनका जाना बहुत अस्वाभाविक लग रहा है ..सोचा था उनके हाथों मेरी शोध पुस्तक का लोकार्पण होता...हर बार जब भी फोन करता था तो ये ज़रूर पूछती थीं कि कब आ रही है!
अब वो पूछना नहीं होगा.. मेरे शोध की प्रथम प्रेरणा पुस्तक की अनुवादिका का अवसान मेरे लिए बहुत बड़ा झटका है..
aapki bhaawnaaon ko salaam
बहुत दुखद!
I read your new content in the blog.It was fascinating,written very beautifully with intensively heart-touching words......unknowingly u always know prabha didi .Really sad to know about the woman you always admired and respected is no more..
Dushyanji,
Mai pehlee baar apke blogpe likh paa rahee hun...3/4 baar aisa hua ki jaisehi maine comment boxme likhna chaha bijlee gul ho gayi aur pata chala ki inverterki batteries jawab de gayeen...
Khair aaj mai bohot dertak padhtee rahee. Kuchh arsaa hua,jabse mai Hindi sahityase kat gayee thee...chahkebhee padh nahee pa rahee thee.
Mujhe behad achha laga aapka blog padhna...auronke commentsbhee padhe...ab Prabhajeeki likhi kitab"Chhinnamasta" aur "Peelee Aandhi" khoj rahee hun...shayad Dehleemehee uplabdh ho...Mumbai puneme nahee hai.
Aapse rashk ho raha hai ki aapka aur Prabhaji kaa itna achha sambandh raha....kaash maibhi unse mulaqat na sahee khatokitabathee kar patee!
aap sabhi ko bahut-bahut dhanyawad.
Prabha khaitan jaisi strion ko yaad rakhna jaruri hai kyonki stri tha bhumandalikarn ka un par prabhao per unhoin bhut likha. ek vichardhara de.
moahn kumar
PA to dr. prabha khaitan
till death.
aap sabhi ko bahut-bahut dhanyawad.
Prabha khaitan jaisi strion ko yaad rakhna jaruri hai kyonki stri tha bhumandalikarn ka un par prabhao per unhoin bhut likha. ek vichardhara de.
moahn kumar
PA to dr. prabha khaitan
till death.
aap sabhi ko bahut-bahut dhanyawad.
Prabha khaitan jaisi strion ko yaad rakhna jaruri hai kyonki stri tha bhumandalikarn ka un par prabhao per unhoin bhut likha. ek vichardhara de.
moahn kumar
PA to dr. prabha khaitan
till death.
chinna masta aur peeli andhi jaisi dil choo lene wali kratiyno ki rachna karne wali--prabhaji ko naman-J.K.PANDEY-- RAIL ADHIKARI MUMBAI
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