Saturday, January 12, 2013

25 जनवरी



तारीख ही थी कैलेंडर की
मानवता के सुदीर्घ इतिहास में

कभी पूर्व संध्‍या भारतीय गणतंत्र की
कुछ खास नहीं किसी व्‍यक्तिगत इतिहास में
लिखा जाना था कोई मौखिक शपथ पत्र
आयु जिसकी मानकर अनंत

संधिकाल था वह दो दिवसों का
और हो गई संधि, कोई संबंध नहीं द्विपक्षीय !

और तदंतर पर्चियां उडनी थी, उडने थे परखच्‍चे
उस अस्‍थाई भावनात्‍मक जुडाव की
क्‍योंकि 'भावनाएं स्‍थाई नहीं होती' पूर्व कथन था यही तो !

व्‍यर्थ इस भाव को तदापि
स्‍वीकार लेना स्‍थाई
और जोड लेना कोई स्‍थाई साथ।

विश्‍वास और प्रतिबद्धता का आदर्श और यथेष्‍टतम रूप भी निष्‍फल होना था क्‍या ?

मूर्खता चरम
नासमझी परम
और लहजा नरम नरम !

2 comments:

Era Tak said...

tevar Garam...kadva satya likha hai...

sushila said...

"क्योंकि भावनाएँ स्थाई नहीं होतीं"

सही कहा। यह अस्थाईपन कितना पीड़ादायक हो जाता है !