हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
बहुत दोस्तों ने बहुत बार कहा पूछा, टोका, गालियाँ दी कि आखिर मैंने ब्लॉग से उनके शब्दों में 'इतनी खूबसूरत और प्यारी कवितायें ' क्यों हटा दीं जो मेरी अपनी थीं ,आज वही बात कर रहा हूँ , कहना चाह रहा हूँ पता नहीं सही तरीके से कह भी पाउँगा या नहीं ,खैर चलिए ..कोशिश करता हूँ पहला और इतिहास के विद्यार्थी के नाते कहूँ तो तात्कालिक कारण तो ये था कि लगा कि नितांत व्यक्तिगत अनुभूतियों को क्यों ऐसे बाँट रहा हूँ ,हालांकि यहाँ बड़ा विरोधाभास मौजूद है कि अगर उन अनुभूतियों को कविता की शक्ल मिल गयी है तो मुझे क्या अधिकार है उन्हें अपने पास छुपा के रखने का और फिर मैं ये चाहता ही क्यों हूँ ...जिन्दगी विरोधाभासों से लबरेज है कम से कम मेरी तो है ही ...
पर यकीनन ये अकेला कारण नहीं है ,अगरचे मानता हूँ कि ज्यादातर चीज़ें एक कारण पर टिकी होती हैं चाहे बोद्ध और सांख्य दर्शन वाले मुझे दबाके गालियाँ दें पर मुझे लगता है किसीबात को और ज़्यादा मजबूती से जस्टिफाई करने के लिए कई कारण ढूंढें जाते हैं ,मेरे कवितायें हटाने के दूसरे कारणों में है -एक तो ये कि पहले दिन से रचना चोरी का भय रहा है ब्लॉग पर से और वो हुआ भी..मेरी कविता पंक्ति को नारे की तरह इस्तेमाल करना बिना क्रेडिट के बड़ा दुखद लगा ,मैं कोई गालिब तो हूँ नहीं कि कोई गाए -'मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का 'और लोग चिल्ला पड़े अरे ये तो ग़ालिब का है ना याकि क्यों फेंक रहे हों ये तो गालिब का है ,मुझ अदने से आदमी की क्या औकात !
और एक वजह ये समझ में आती है कि ब्लॉग को अपने विचार की भडास का ही माध्यम बनाऊं और क्योंकि बड़े लोग अगर ब्लॉग पर कविता लिखें तो वाह और मुझ जैसे लिखे तो ये कि अगर असफल कवि ब्लॉग पर कवितायें लिख रहें हैं....सस्ती लोकप्रियता के लिए....चाहे इसे मेरा हारना कहें कि उनके कहने पर मैं कवितायें हटा रहा हूँ पर ...मैं जब लोग मुझे हारा हुआ कहते हैं ,चिल्लाकर कहना पसंद करता हूँ कि हाँ हार गया हूँ...कई बार कोई कहे उस से पहले ही ...क्योंकि यही हार मेरी जीत का रास्ता बनाती है ॥
आमीन
4 comments:
khair aap jo bhi sochte hon aap ke upar hai par chuki aap ne ye bate sarwjanik ki hia isliye main itna jarur kahna chahoonga ki kavita padhne wale kavita ko isliye achha nahin kahte kyu ki vo gzalib ne likhi hai balki sirf isliye achha kahte hain kyu ki vo kahin na kahin khud ko usse jod lete hain. kavita ki khushi me unhe apni aur kavita ke dard me unhe apna dard dikhayi deta hai.
aur ye bhi jaruri nahin ki kavita kewal apne pe likhi jaye. log kavita likhne ki shuruvat jarur apne se karte hain par fir ise aur badhate hain doosre ki bhavnao ko vyakt karte hain
baki kavitayen aap ki hai aap chahe use prakashit karein ya na karen aap ke upar
vo log bevkoof hain jo blog ko kewal bhadaas samjhte hain aur kahte hain ye to aap ke hath me ek hadhude ki tarah hai jisse nakkasi bhi ki ja sakti hai aur doosro ko chot bhi pahuchayi ja sakti hai
baki aap ke upar
शुक्रिया भाई पर अभी मेरी कविताओं में आलमी मंजरनामा नहीं है ,ग़ालिब की कविता दिल की छूती है टू ये बुनियादी बात है और छूटे छूटे ये इतनी मकबूल हो जाए की हर किसी की जुबां पे हो तो उसका मर्तबा और पहचान ज़रा मुख्तलिफ हो जाती है ,उसे अपने तारुफ़ की ज़रूरत नहीं होती ,आपकी मुहब्बत का दिली शुक्रिया दोस्त
ये आपने उचित नहीं किया.
आख़िर तो वो कवितायें आपने लिखी स्वयं के लिए ही थी.
दूसरो पर क्या असर होता है क्यों परवाह करते हैं.
बस एक ही बात का ख्याल रखना काफ़ी है ऐसा कुछ ना लिखा जाय जिससे किसी भले आदमी का दिल दुखे.
आप वो कविताएँ दें जो पहले कहीं छप गई हों...या ब्लॉग पर छपने के साथ ही कहीं छप रही हों....चोरों से न डरें...कैसा भी चोर हो पकड़ा ही जाता है...
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