Saturday, June 21, 2008

अपने शहर की याद में...

मेरे दर्द के दरिया पर मिली प्रतिक्रियों से अभिभूत हूँ.कहते हैं बाँटने से दर्द हल्का हो जाता है ,यह हो भी रहा है..उन स्मृतियों की खिड़कियों में झांकना यूँ तो आँख के कोरों को भिगोना ही है पर ये मीठे दर्द की तरह है,ये यादें एक थाती की तरह है,वो शहर वो बचपन....
मेरा वो स्कूल डी ऐ वी स्कूल ..नंवी से बारहवीं तक के चार साल ऐसा स्कूल जहाँ सिर्फ़ लड़के थे..लड़कियों को निहारने को लंबा जाना पड़ता था ,अपनी उस नयी हीरो रेंजर साईकिल पर लड़कियों के स्कूल के रस्ते से होकर जाना..,,विशेषकर सरकारी गर्ल्स स्कूल की बालिका को देखने के लिए एक नुक्कड़(पूर्व मंत्री मरहूम प्रो.केदार के घर का नुक्कड़ ) पर साईकिल पर सवार सवार लगभग ६० डिग्री झुकाकर पाँव नीचे लगाकर चार बजकर अट्ठावन मिनट का इंतज़ार, मैं ये वक्त इसलिए नहीं भूलता कि ये मेरा पहला ' क्रश ' ,या पहला प्यार (!)था...कि शाम की पारी में उसके स्कूल था और मैं अपनी छुट्टी के बाद एक झलक के लिए उस वक्त का इन्तेज़ार करता था,वक्त भी ऐसा कि घड़ी मिला लें ,हालांकि हुआ कुछ भी नहीं -'जो बात दिल में थी दिल में घुट के रह गयी ,उसने पूछा भी नहीं और मैंने बताया भी '.....झलक तक महदूद रही,हिम्मत ही नहीं पडी
जब हिम्मत हुयी तब तक बहुत कुछ बदल चुका था..और चीज़ें दिल की बजाय दिमाग से तय होना शुरू हो गयीं कम से कम उन मोहतरमा की तरफ़ से..तब करारा थपड नुमा जवाब मिला जो उन्होंने अपनी सहेलियों के सामने दिया- 'इन साहब को मैंने तो कह दिया आप भी कह दें कि ज़रा आईना देख लें...फ़िर क्या था रफी के गाने 'तू जिसे चाहे तेरा प्यार उसी का हक है' को गाते हुए जिन्दगी में आगे बढ़ लिए..ये सोचते हुए कि चलो लेखक को अपनी जिन्दगी में सुनाने को किस्सा तो मिल गया.उसके बाद फ़िर वो मोहतरमा मुझे कई साल बाद सादुलपुर चुरू में सवारी गाडी में यात्रा करते हुए मिली ,जो हिसार से आ रही थी , दो बच्चे ,मध्यमवर्गीय जीवन स्थितियों के बीच पसीने से तरबतर ,एकबारगी उसे पहचाना नहीं फ़िर उसकी उन आँखों ने याद दिला दिया...
हालाँकि उसने मुझे नहीं देखा..अच्छा ही हुआ ..मेरा देखने का भाव अलग था..एक मां को देखा जो अपने बच्चे को पानी पिलाने के लिए ट्रेन से उतरी है जल्दी में कि कही ट्रेन ना चल दे , ये दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे वाली यूरोपियन ट्रेन नहीं थी ....
मुझे उस पर इस रूप में देखकर पहले से ज़्यादा प्यार आया...
हम आप अपने शहर को यूँ भी याद कर सकते हैं ,
है ना.....

1 comment:

गौरव सोलंकी said...

अरे हुज़ूर ...कितनी प्यारी बात कितनी सादगी से बता गए आप...
सब शहरों में ऐसे ही रेलगाडियों, बसों , गलियों में कितने किस्से अकेले तैर रहे होंगे ...