आज ये एक खुली प्रतिक्रिया है। मेरे अखबार डेली न्यूज़ की साप्ताहिक महिला पत्रिका खुशबू की संपादक वर्षा जी के विचारों पर। घटना का लब्बोलुआब ये है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़रदारी ने अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार सारा पुलिन को प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि आप खूबसूरत हैं और अब जाना अमेरिका आप पर क्यों फ़िदा है पत्रकारों के कहने कि क्या आप हाथ मिलायेंगे ताकि एक फ्रेंडली तस्वीर ली जा सके। तो ज़रदारी साब कहते हैं आप इजाजत दें तो गले भी लग सकता हूँ॥सीएनएन के मुताबिक आंखों देखा हाल ये है- Pakistan’s recently-elected president, Asif Ali Zardari, entered the room seconds later. Palin rose to shake his hand, saying she was “honored” to meet him. Zardari then called her “gorgeous” and said: “Now I know why the whole of America is crazy about you.”
“You are so nice,” Palin said, smiling. “Thank you.” A handler from Zardari’s entourage then told the two politicians to keep shaking hands for the cameras. “If he’s insisting, I might hug,” Zardari said. Palin smiled politely.
पहली बात तो ये कि ये कहीं अकेले में नहीं कहा गया.सारा ने जाहिर तौर पर कोई शिकायत नहीं की कि ये बदतमीजी है ..बहुत सम्मानपूर्ण तरीके से तारीफ़ की गयी है..खैर..दूसरी तरफ़ देखें फतवा आया है..लाल मस्जिद से..फतवा कोई दे.. ग़लत है..व्यक्तिगत सोच की स्वतंत्रता की अस्वीकृति है..वर्शाजी कहती है कि ये हिमाकत है ज़रदारी मियाँ कि जैसे किसी जूनियर आर्टिस्ट ने ऐश्वर्या रॉय को कुछ बोल दिया हो यहाँ तो आलम ये है कि फिलहाल ज़रदारी ऐश्वर्या की तरह हैं..निर्वाचित राष्ट्रपति हैं.यानी एक राष्ट्राध्यक्ष और वो अलास्का प्रान्त की गवर्नर और उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार. तो मेरे ख़याल में ये जूनियर सीनियर की बात नहीं है..प्रशंसा के लिए ज़रूरत भी नहीं है..वैसे थोडा पतला करें तो दिलीप साब तो बहुत सीनियर थे जब उन्होंने सायरा से निकाह किया या कि प्यार अलग बात है..चलो एक बार मान लिया...हाँ मजाक में ये कह सकते हैं..ज़रदारी को अपने पद के मुताबिक महिला चुननी चाहिए थी..अपने से हीन महिला को चुनना स्तर के अनुरूप नहीं है..यहाँ मुझे पुरूष लम्पटता के पैरोकार का आरोप भी सहना पड़ सकता है मैं जानता हूँ॥
पहली बात तो ये कि ये कहीं अकेले में नहीं कहा गया.सारा ने जाहिर तौर पर कोई शिकायत नहीं की कि ये बदतमीजी है ..बहुत सम्मानपूर्ण तरीके से तारीफ़ की गयी है..खैर..दूसरी तरफ़ देखें फतवा आया है..लाल मस्जिद से..फतवा कोई दे.. ग़लत है..व्यक्तिगत सोच की स्वतंत्रता की अस्वीकृति है..वर्शाजी कहती है कि ये हिमाकत है ज़रदारी मियाँ कि जैसे किसी जूनियर आर्टिस्ट ने ऐश्वर्या रॉय को कुछ बोल दिया हो यहाँ तो आलम ये है कि फिलहाल ज़रदारी ऐश्वर्या की तरह हैं..निर्वाचित राष्ट्रपति हैं.यानी एक राष्ट्राध्यक्ष और वो अलास्का प्रान्त की गवर्नर और उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार. तो मेरे ख़याल में ये जूनियर सीनियर की बात नहीं है..प्रशंसा के लिए ज़रूरत भी नहीं है..वैसे थोडा पतला करें तो दिलीप साब तो बहुत सीनियर थे जब उन्होंने सायरा से निकाह किया या कि प्यार अलग बात है..चलो एक बार मान लिया...हाँ मजाक में ये कह सकते हैं..ज़रदारी को अपने पद के मुताबिक महिला चुननी चाहिए थी..अपने से हीन महिला को चुनना स्तर के अनुरूप नहीं है..यहाँ मुझे पुरूष लम्पटता के पैरोकार का आरोप भी सहना पड़ सकता है मैं जानता हूँ॥
पर सवाल वो नहीं है..हिंदुस्तान या भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें..तो एक बात तो ये कि ये होली की चुहल का देश है.. सन्दर्भ आया तो बताता चलूँ..जो वर्षा जी के इस स्टेंड को मजबूती देगा..कि मैंने अपने परिवार में जबसे होश संभाला सेक्स तो क्या प्रेम को भी निहायत एक वर्जित विषय पाया..विवाह से इतर या पूर्व प्रेम की चर्चा मानो अपराध रही जब मैंने अपने प्रेम और अंतरजातीय विवाह की बात रखी तो ये क्रांति सरीखा था.जो नाकामयाब क्रांति रही..मेरी बहन ने आंशिक प्रेम के बाद विवाह किया..हो पाया क्योंकि जातीय समस्या नहीं थी..और वो बेचारी आज तक 'शर्म' के बारे कह नहीं पाती कि ये विवाह आंशिक प्रेम का परिणाम है जबकि वो दर्शन की विद्यार्थी रही है पीएच डी है और पढाती भी है....
एक और उदाहरण दूँ मेरी एक कजिन के विधवा होने पर उसका दूसरे विवाह का प्रस्ताव मेरे परिवार में घोर अधार्मिक किस्म का अनैतिक कर्म के रूप में देखा गया इस पर मेरे सैद्धांतिक समर्थन को कहा गया कि इसे तो जयपुर या नयी दुनिया की हवा लग गई है..और ज़्यादा पढ़ लिख गया है..पागल हो गया है॥
वर्षा जी खुश हो सकती हैं पर प्लीज़ होल्ड ऑन... मेरे परिवार की इस तस्वीर को मैं नहीं मानता कि हिन्दुस्तान की तस्वीर है..या होनी चाहिए..होना चाहिए का खयाल तो खैर बेमानी है.. और इसीलिए हम इसे भारतीय उपमहाद्वीप की कुल मिलाकर राष्ट्रीय समस्या करार नहीं दे सकते ! अगर हम ये मान ले कि फ्लर्टिंग धीरे धीरे स्वीकार्य होती जा रही है.... तो..फ़िर इसे बुरा कह सकते हैं.? एक बात और देखें समाजशास्त्रीय सन्दर्भों में बात करें तो ये समय चाक चौबंद रिश्तों का समय नहीं है क्योंकि गृहणी का दौर जा चुका है..वर्किंग वीमेन का समय है..संपर्क व्यापक हैं..संवाद व्यापक हैं..चुहल का विस्तार है..हालाँकि इसमें खतरें हैं और वाजिब बात है..जिसका इशारा वर्षा जी करती हैं कि फ्लर्टिंग से रिश्तों की गंभीरता पर असर पड़ रहा है..मान लें कि एक बार पड़ता है.. पर क्या वर्क प्लेस पर बेहद संजीदगी से घुट नहीं जायेंगे!..वैसे भी हम हिन्दुस्तानियों कोस्त्री पुरूष को केवल और केवल किसी न किसी सम्बन्ध के दायरे में ही देखना आता है..दोस्ती यानी पुलिसिया दृष्टि से 'अवैध सम्बन्ध' पर सामान्य नज़र से 'संदिग्ध' और पीछे से आंख दबाने का कारण..बेशर्मी से... जाती तौर पर कहूं तो अब ज़्यादा समझदारी से आपसी समझ से रिश्ते निभाने का समय है.. तो फ्लर्टिंग बड़ा इश्यु नहीं है..इसे यह कहकर जस्टिफाई नहीं करूंगा कि महिलायें भी ऐसा करती हैं..सहकर्मियों या इतर इतनी आजादी लेती हैं..क्योंकि ये कुतर्क होगा..थोडा और विस्तार दें तो कह सकते हैं कि किसी भी कार्य का मंतव्य महत्वपूर्ण होता है..चाहे इसे नापा न जा सके.. फ्लर्टिंग की गंभीरता को या हल्केपन को लाई डिटेक्टर से पकड़ा जाए..बचकाना बात है..है ना..तो चलिए आईये हम संजीदा हो जाएँ.. बेहद संजीदा हो जाएँ.. पर ज़रा रुकिए खवातिनो हजरात! अपना ही उदाहरण ही दूँ..ज़्यादा बेहतर है ....मेरे परिवार में देखा है..बेहद संजीदगी का हश्र भी.प्रेम की बात पर तूफान और विधवा विवाह पर पागल का ठप्पा.. और अगर परम्परा की दुहाई देंगे तो तसलीमा को कैसे डिफेंड करेंगे ...सानिया मिर्जा को?....मकबूल फ़िदा हुसैन को...?
वर्षा जी कहती हैं ज़रदारी का ये विरोध निराधार नहीं है..विरोध का आधार ही ग़लत है कि इस्लामिक परम्पराएँ ये कहती हैं..और ये फतवा है किस से हाथ मिलाओ किस से गले मिलो कब मिलो..
अब क्या आसिफ ज़रदारी बशीर बद्र को याद कर रहे होंगे..कि ये नए(पुराने) मिजाज का शहर (देश) है ज़रा फासले से मिला करो.. दरअसल न ये सवाल नए पुराने का है न जूनियर सीनियर का..ये सवाल फतवे का है..मैं तो कहूंगा कि ज़रदारी बाकी जिन्दगी में जैसे भी हों..भ्रष्ट हों..बेईमान हों..लम्पट हों..पर ये एक्ट तो जाहिरा तौर पर सार्वजानिक और मर्यादित सम्मान पूर्ण है..हमें क्या याद नहीं आता अमेरिका और रूस के राष्ट्राध्यक्ष एक दूसरी की पत्नियों को किस करते हैं वो भी फ्रेंच किस तो.. क्या उसे काउंटर पार्ट्स के बीच का सामान्य व्यवहार कहेंगे..इसे विषयांतर कहकर भी पल्ला नहीं झाड़ सकते...वो फ्लर्ट है!
अब क्या आसिफ ज़रदारी बशीर बद्र को याद कर रहे होंगे..कि ये नए(पुराने) मिजाज का शहर (देश) है ज़रा फासले से मिला करो.. दरअसल न ये सवाल नए पुराने का है न जूनियर सीनियर का..ये सवाल फतवे का है..मैं तो कहूंगा कि ज़रदारी बाकी जिन्दगी में जैसे भी हों..भ्रष्ट हों..बेईमान हों..लम्पट हों..पर ये एक्ट तो जाहिरा तौर पर सार्वजानिक और मर्यादित सम्मान पूर्ण है..हमें क्या याद नहीं आता अमेरिका और रूस के राष्ट्राध्यक्ष एक दूसरी की पत्नियों को किस करते हैं वो भी फ्रेंच किस तो.. क्या उसे काउंटर पार्ट्स के बीच का सामान्य व्यवहार कहेंगे..इसे विषयांतर कहकर भी पल्ला नहीं झाड़ सकते...वो फ्लर्ट है!
साफगोई और तार्किक बेबाकी वाले इंसान की वैचारिक गिरावट की आहट सुन रही है..खुदा ना करे ऐसा हो..वर्षा जी सुन रही हैं क्या?
8 comments:
aapne apni post mai sabh kuch kah diya hai....ab jo jise samjhna hai samjhe
बहुत बढ़िया पोस्ट.
वक़्त बदल रहा है जिसका जितना एक्स्पोसर वो वैसी बात करेगा .flirting एक सामान्य प्रक्रिया है जब तक मर्यादा का उलंघन न करे ओर दोनों ओर से हो.
Your views r right n conservative.your content was satisfactory, respectable.
दुष्यंत जी आपकी तार्किकता विलक्षण और विचित्र सी है..पर भाषा मोहक ..असहमत भी एक बार तो भाषा पर मोहित होकर साथ बह जाए
निशा सिंह
दिल्ली
दुष्यंत लिखते अच्छा हो तो कुछ भी मनवा लोगे क्या ! नजाक कर रहा हूँ .. पीस तो बढ़िया है.बधाई
दुष्यंत जी नमस्कार विचार पसंद आए..कम लिखते हैं रोजाना लिखा करें तो मज़ा आ जाए इतना दूर होकर भी आपकी फैन हो गयी हूँ .
guru kya baat hai.kaheen pe nighanhe kaheen pe nishana.waah.lage raho guru
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