बात अपने बचपन से शुरू करता हूँ..अपने अध्यापक पिता से बाल सुलभ जिज्ञासा में पूछा था कि 'पापा गाँव के चौधरी जब ख़ुद खेती नहीं करते खेत तो कोई चौथिया तीजिया पांचिया जोतता है फ़िर ये ख़ुद को किसान कैसे कहते हैं.किसान तो वही होता है ना जो खेती करता है' तब पापा ने कहा था कि 'जो खेती की ज़मीन रखता है वो भी किसान है '
फ़िर हम बड़े हुए इतिहास को ओढा बिछाया तो अंग्रेजों के ज़माने को पढ़ते हुए पता चला कि फार्मर और पीजेंट नाम के दो शब्द होते हैं जो बताते हैं कि ज़मीन किसी की,खेती कोई और करता है.. मेरा जन्म गंगानगर का है सरसब्ज इलाका ..और मेरा ननिहाल हरियाणा में है मेरा ननिहाल देवीलाल की बेटी का ससुराल है लिहाजा ..बचपन में किसान राजनीति के पुरोधा देवीलाल को करीब से देखा है...किसान राजनीति के सबसे बौद्धिक और प्रभावी नेता चरण सिंह के इलाके की लडकी से पहला सर्व विदित और दो तरफा प्रेम हुआ,उसके मुंह और अपने अध्ययन अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि इन दोनों किसान नेताओं ने कभी जाट पहचान की बात नहीं की ,किसान की बात की..उसके नाम पर वोट मांगे..ऐनक का निशान होगा मुख्यमंत्री किसान होगा के नारे अब भी देवीलाल का बेटा देता है ...क्योंकि देवीलाल ने कहा था..'लोक राज लोक लाज से चलता है' तो लोकलाज तो जाति के आधार पे बाँटने की बात को स्वीकार कर ही नहीं सकती है ...
अब मुद्दे की बात पे आ जायें किसी जाति के मुख्यमंत्री बनने की मांग कितनी अलोकतांत्रिक है ...कल लोकतंत्र की जीत की बात पे बल्लियों उछल रहा था मैं ...आज कांग्रेस के उस अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष मुख्यमंत्री पद के उमीदवार को इस बात पे खारिज किया जाता है कि कि जाट ही मुख्यमंत्री होना चाहिए ..जाति की राजनीति का हश्र नाथूराम मिर्धा से राजाराम मील और सुरेश मिश्रा से भंवरलाल शर्मा तक सब का हम देख चुके हैं...
सीमा प्रहरी सैनिक के कल्याण के लिए पद्मश्री पाने वाला कैसे राष्ट्र हित पर जाति हित को बड़ा ठहरा सकता है ये भी सोचनीय है ...एक हद तक भारतीय समाज का चरित्र जातिवादी है और रहेगा पर राजनीति समाज से चले तो परिणाम भयावह होंगे ..कहीं न कहीं इसमें वसुंधरा के बोए बीजों का फल है ..वरना उनसे पूछे कि जब यहाँ जाट को सीएम बनने को लामबंद हो तो अगले चुनाव में गैर जाट मतदाता के सामने कैसे वोट मांगेगे ..? क्या शर्म नहीं आयेगी.? .क्या अपनी सीट भी निकाल लेंगे अगर इस आधार पर सारे गैर जाट उनके ख़िलाफ़ लामबंद हो जाए ..?अगर खेती करने वाले को ही किसान कहा जाए तो बेहतर है किसी दलित तीजिये पान्चिये चौथिये को मुख्यमंत्री के लिए नामित किया जाना चाहिए और इस आधार पर तो बी एस पी के 6 विधायक भी साथ आ जायेंगे...जाति के नाम पे लड़वाने के लिए वसुंधरा को कटघरे में खडा करने वाले ये कोनसा सदभाव फैला रहे हैं ..मेरी समझ से बाहर है ..पर इतना समझ में आता है कि बचपन का पाठ नए अर्थ ले रहा है किसान मतलब सिर्फ़ जाट चाहे वो खेती करे या नहीं..
फ़िर हम बड़े हुए इतिहास को ओढा बिछाया तो अंग्रेजों के ज़माने को पढ़ते हुए पता चला कि फार्मर और पीजेंट नाम के दो शब्द होते हैं जो बताते हैं कि ज़मीन किसी की,खेती कोई और करता है.. मेरा जन्म गंगानगर का है सरसब्ज इलाका ..और मेरा ननिहाल हरियाणा में है मेरा ननिहाल देवीलाल की बेटी का ससुराल है लिहाजा ..बचपन में किसान राजनीति के पुरोधा देवीलाल को करीब से देखा है...किसान राजनीति के सबसे बौद्धिक और प्रभावी नेता चरण सिंह के इलाके की लडकी से पहला सर्व विदित और दो तरफा प्रेम हुआ,उसके मुंह और अपने अध्ययन अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि इन दोनों किसान नेताओं ने कभी जाट पहचान की बात नहीं की ,किसान की बात की..उसके नाम पर वोट मांगे..ऐनक का निशान होगा मुख्यमंत्री किसान होगा के नारे अब भी देवीलाल का बेटा देता है ...क्योंकि देवीलाल ने कहा था..'लोक राज लोक लाज से चलता है' तो लोकलाज तो जाति के आधार पे बाँटने की बात को स्वीकार कर ही नहीं सकती है ...
अब मुद्दे की बात पे आ जायें किसी जाति के मुख्यमंत्री बनने की मांग कितनी अलोकतांत्रिक है ...कल लोकतंत्र की जीत की बात पे बल्लियों उछल रहा था मैं ...आज कांग्रेस के उस अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष मुख्यमंत्री पद के उमीदवार को इस बात पे खारिज किया जाता है कि कि जाट ही मुख्यमंत्री होना चाहिए ..जाति की राजनीति का हश्र नाथूराम मिर्धा से राजाराम मील और सुरेश मिश्रा से भंवरलाल शर्मा तक सब का हम देख चुके हैं...
सीमा प्रहरी सैनिक के कल्याण के लिए पद्मश्री पाने वाला कैसे राष्ट्र हित पर जाति हित को बड़ा ठहरा सकता है ये भी सोचनीय है ...एक हद तक भारतीय समाज का चरित्र जातिवादी है और रहेगा पर राजनीति समाज से चले तो परिणाम भयावह होंगे ..कहीं न कहीं इसमें वसुंधरा के बोए बीजों का फल है ..वरना उनसे पूछे कि जब यहाँ जाट को सीएम बनने को लामबंद हो तो अगले चुनाव में गैर जाट मतदाता के सामने कैसे वोट मांगेगे ..? क्या शर्म नहीं आयेगी.? .क्या अपनी सीट भी निकाल लेंगे अगर इस आधार पर सारे गैर जाट उनके ख़िलाफ़ लामबंद हो जाए ..?अगर खेती करने वाले को ही किसान कहा जाए तो बेहतर है किसी दलित तीजिये पान्चिये चौथिये को मुख्यमंत्री के लिए नामित किया जाना चाहिए और इस आधार पर तो बी एस पी के 6 विधायक भी साथ आ जायेंगे...जाति के नाम पे लड़वाने के लिए वसुंधरा को कटघरे में खडा करने वाले ये कोनसा सदभाव फैला रहे हैं ..मेरी समझ से बाहर है ..पर इतना समझ में आता है कि बचपन का पाठ नए अर्थ ले रहा है किसान मतलब सिर्फ़ जाट चाहे वो खेती करे या नहीं..
9 comments:
आपकी बात सही है. उत्पाती लोगों को नकारने की शुरुआत बस्सी और राजगाद-लक्ष्मानगढ़ से हो चुकी है. कोई भी जाती हो, कोई भी व्यक्ति, यदि दूसरी जत्िओं ने असुरकसा की भावना महसूस की, तो उसके खिलाफ दूसरी जातियाँ लामबंद हो जाएँगी. इसलिया इस संकेत को समझा जाना चाहिया. और जाती, समाज की बात करने वाला सर्व समाज की बात करे, इसी आधार पर नेता चुना जाना चाहिया, यही राज्य हित में होगा. काश ऐसे लोग आपकी बात को समझ पाएँ. ईस्वर उन्हें आपका लेख पढ़ने की सद्बूढ़ी दे.
aapki bat aage chalkar sahi sabit hogi.
दुष्यंत भाई, हम एक ऐसे विकट समय में जी रहे हैं जब स्यापा करने के सिवा हमारे ल्ये कोई विकल्प नहीं बचा है. पहले चुनाव में जाति के आधार पर टिकिटों की (बंदर)बांट और अब और भी अधिक बेशर्मी से जाति के आधार पर मुख्य मंत्री पद पर दावा. आखिर कहां जा रहे हैं हम? वैसे इस चुनाव में भी जाति का वर्चस्व कम नहीं रहा है.मुझे तो लगता है कि हर जाति में ऐसे ठेकेदार पनप गये हैं जो वोटों का सौदा करते हैं. उम्मीदवार और पार्टियां भी उनसे ही मोल भाव तै करती हैं. आप मुझ जैसे आम वोटर को तो अब उम्मीदवार लोक-लाज के लिए भी नहीं पूछता. हमारे-आपके जाने बगौर ही हमारे वोटों का सौदा हो जाता है.
आ इस प्रखर और समयोचित टिप्पणी के लिए बधाई.
Nayee peedhi jaldi hee aane walee hai tab nayee hawa ka jhonka aayega!
Narendra nath.
khari khari kahane ke liye meri badhai-madan gopal ladha
khari khari kahane ke liye badhai-madangopal ladha
grt
bahut majedaar baat h ki in logo ne rajasthan ke sare KISHAN HOSTELS par KISHAN ke naam par kabja jama rkha h....yane ki kishan to sirf yahi h...or dusare to asamaan se tapake hai ? dushyant ji apako badhay.
mahaveer sa ne thode sabdo mai hi iieina dikha diya badhaya hkm
Post a Comment