बचपन से हम तिब्बत को संसार की छत के रूप में पढ़ते हैं फिर वो भूगोल से हमारे इतिहास के अध्ययन में शामिल होता है तो कभी दयानंद सरस्वती उसे आर्यों का मूल निवास स्थान बताते हैं तो कभी उसे बोद्धों के एक प्रमुख केंद्र के रूप में जानते हैं और राहुल संकृत्यायन की चार तिब्बती यात्रायें भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं ,ये हमारी नियति या तिब्बत की दुर्गति कहें या समय का फरेब कि वो हमारे वर्तमान में भी है दुखद कारणों से है अशांत है, ये अफ़सोस की बात है ।
भारतवर्ष के इतिहास और संस्कृति का ये अमर पात्र इन दिनों अपने इतिहास की एक घटना के पचास साल पूरे कर रहा है ,वो घटना है क्रांति की जो 1959 में 10 मार्च को हुई थी इतिहास से वर्तमान में आके बात करें तो दलाई लामा भारत में शरणार्थी हैं ..हिमाचल के धर्मशाला में उनकी तथाकथित सरकार का कार्यालय भी है और ये आज से नहीं है इसे भी पचास साल हो गए हैं
जग जाहिर है कि भारत तिब्बत की इस सरकार को कूटनीतिक मान्यता देता है और चीन से भी उसके सम्बन्ध ठीक ठाक से हैं और तिब्बत का संघर्ष चीन से है हम ज्यादा कूटनीतिक पेचीदगियों में न जाएँ तो भी तिब्बतियों के हक की पैरवी करते भारत के बाशिंदों के लिहाज से उस दिन को इस रूप में देखना ज़रूरी लगता है कि 86 हज़ार तिब्बतियों के बलिदान के बाद भी तिब्बतियों को वो हक नहीं मिले थे जो वो मांग रहे थे चाह रहे थे इस लिहाज से ये उनका 1857 है हमारी सांस्कृतिक जड़ें उस देश में है ,
पाकिस्तान में लोकतंत्र खतरे में है बांग्लादेश में एक विद्रोह हुआ ही है श्री लंका और नेपाल भी कोई बहुत बेहतर स्थितियों में नहीं है पूरा भारतीय उपमहाद्वीप जिस तरह के दौर से गुजर रहा है उस दौर के बीच उस के सबसे बड़े देश और महा लोकतंत्र में आम चुनाव का बिगुल बजा है ! क्या हमें अपने आस पास देखना नहीं चाहिए..ताज़ा खबर ये है कितिब्बती संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के जेनेवा स्थित मानवाधिकार आयुक्त को गुहार लगाईं है कि चीन उस असफल क्रांति की पचासवीं सालगिरह के आयोजनों में भी भय दिखा रहा है और हमारे मानवाधिकारों का हनन दशकों से बदस्तूर जारी है... तिब्बत की भी कोई सुनेगा क्या?
3 comments:
you are very sensitive.
but its true,we have to think about it.
बचपन से हम तिब्बत को संसार की छत के रूप में पढ़ते हैं फिर वो भूगोल से हमारे इतिहास के अध्ययन में शामिल होता है
shuruat behad umda hai to
aur ant bhee mashallah
तिब्बत की भी कोई सुनेगा क्या?
good piece of writing .keep on dushyant
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