एंटीगनी (ग्रीक नाटक)
द्वारा सोफोक्लीज़
अनुवाद रणवीर सिंह
पंचशील प्रकाशन, जयपुर,
अस्सी रुपये,
पृ 52, 2007
जिस सूचना क्रांति या कहें सूचना विस्फोट के युग में हम जी रहे हैं वहाँ थियेटर की भूमिका बहस का मुद्दा हो सकती है पर जब तक जीवनधारा प्रवाहित है, कलाओं की अहमियत में इजाफा ही होना है और थियेटर भीकतई इसका अपवाद नहीं है। रंगकर्मी जेड़ी अश्वथामा के शब्द याद आतें हैं जब वो कहते हैं कि ''थियेटर सिनेमा और टीवी से अलग विधा है। आज जब हम टीवी और सिनेमा के युग में जी रहे हैं तो थियेटर की भूमिका और जरूरत टीवी और सिनेमा से अनेक समानताओं के बावजूद एक अलग और महत्वपूर्ण स्तर पर कायम है।'' यूनान को दुनिया में थियेटर के जनक देशों में एक माना जाता है और सोफोक्लीज (496-406 ईपू) ग्रीक थियेटर का दूसरा महान नाटककार था, उसके सौ नाटकों में से संप्रति सात ही मौजूद है - अजैक्स, एंटीगनी, इडिपस दी रेक्स, फिलोसटेटिस, एलेक्ट्रा, वीमन एट ट्राचिस, इडिपस एट कोलोनस। उसके अधिकांश नाटक मनुष्य और उसकी नियति के संघर्ष को प्रस्तुत करते हैं। कितना खूबसूरत और दिलफरेब विरोधाभास है कि उसके पात्र पराजय में विजयी होते हैं, विजय में पराजित होते है, पर उसकी समस्त संघर्ष प्रक्रिया सोद्देश्य है हर पात्र जीवनस्थितियोको परिवर्तित करने को उद्यत है। एन्टीगनी उसी यूरोप की धरती से निकल कर आया नाटक है जहां थियेटर, पुन: जेड़ी क़े शब्दों में कहूं तो 'लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा है, वहां के लोगों की आदत में शुमार है, उनकी एक हसीन शाम का जरूरी हिस्सा है।'
वरिष्ठ रंगकर्मी रणवीर सिंह द्वारा सद्य: अनूदित सोफोक्लीज का नाटकएंटीगनी सोफोक्लीज और ग्रीक थियेटर के साथ मानवीय संघर्ष को चर्चा के केन्द्र में लाने का प्रयास है। एंटीगनी स्त्री पात्र है और वह जन अधिकारों के लिए लड़ने में अपना सर्वस्त्र बलिदान कर देती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्त्री विमर्श, वैयक्तिक अस्तित्व जैसे विचार बिन्दु एंटीगनी के माध्यम से रणवीर सिंह हमारे सामने रखते हैं क्योंकि जनता और सत्ता के बीच टकराहट और उसकी बुलंद आवाज का नाम है एंटीगनी। सत्ता को चुनौती और मनुष्य की जीजिविषा का जीवंत दस्तावेज बन जाता है एंटीगनी। ऐसी सशक्त कथा और शिल्प सोफोक्लीज की थियेटर और कला जगत को अनुपम देन है। कहना न होगा कि ऐसी कृति को हिन्दी पाठकों विशेषकर थियेटर जगत के बीच लाने का रणवीर सिंह का ये कदम इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि महान कृतियों को भाषाओं के दायरे में कैद नहीं रहने दिया जाना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात इस अनूदित नाटक की यह भी है कि अनुवाद की भाषा हिन्दी ना होकर हिन्दुस्तानी यानी हिन्दी उर्दू मिश्रित है जो परिवेश को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने में एक ताकत के रूप में सामने आई है। पुस्तक की भूमिका के रूप में ग्रीक थियेटर और नाटककारों पर लम्बी टिप्पणी ने पुस्तक को विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपादेय बना दिया है।
उम्मीद करनी चाहिए कि एंटीगनी के माध्यम से सोफोक्लीज का ये कथन 'समझ नहीं आता कि समझदार भी समझ से काम नहीं लेते', समझदार लोगों तक पहुंच जाए। ये अनुवाद रणवीर सिंह को थियेटर एकेडमिशियन रूप में पुरजोर तरीके से स्थापित करता है, लिहाजा उनकी जिम्मेदारी बढ़नी तय है। उनके ऐसे कदम निश्चय ही गम्भीर और सार्थक थियेटर के लिए मील का पत्थर बनेगें।
( ये नोट्स दरअसल इन्द्रधनुषइंडिया डॉट ओआरजी पर उपलब्ध मेरी पुस्तक समीक्षा है ,वहाँ से साभार लिया है पर बिना डॉ दुर्गा प्रसाद जी अग्रवाल की इजाजत के ,ये मेरा दुस्साहस ही मानें )
द्वारा सोफोक्लीज़
अनुवाद रणवीर सिंह
पंचशील प्रकाशन, जयपुर,
अस्सी रुपये,
पृ 52, 2007
जिस सूचना क्रांति या कहें सूचना विस्फोट के युग में हम जी रहे हैं वहाँ थियेटर की भूमिका बहस का मुद्दा हो सकती है पर जब तक जीवनधारा प्रवाहित है, कलाओं की अहमियत में इजाफा ही होना है और थियेटर भीकतई इसका अपवाद नहीं है। रंगकर्मी जेड़ी अश्वथामा के शब्द याद आतें हैं जब वो कहते हैं कि ''थियेटर सिनेमा और टीवी से अलग विधा है। आज जब हम टीवी और सिनेमा के युग में जी रहे हैं तो थियेटर की भूमिका और जरूरत टीवी और सिनेमा से अनेक समानताओं के बावजूद एक अलग और महत्वपूर्ण स्तर पर कायम है।'' यूनान को दुनिया में थियेटर के जनक देशों में एक माना जाता है और सोफोक्लीज (496-406 ईपू) ग्रीक थियेटर का दूसरा महान नाटककार था, उसके सौ नाटकों में से संप्रति सात ही मौजूद है - अजैक्स, एंटीगनी, इडिपस दी रेक्स, फिलोसटेटिस, एलेक्ट्रा, वीमन एट ट्राचिस, इडिपस एट कोलोनस। उसके अधिकांश नाटक मनुष्य और उसकी नियति के संघर्ष को प्रस्तुत करते हैं। कितना खूबसूरत और दिलफरेब विरोधाभास है कि उसके पात्र पराजय में विजयी होते हैं, विजय में पराजित होते है, पर उसकी समस्त संघर्ष प्रक्रिया सोद्देश्य है हर पात्र जीवनस्थितियोको परिवर्तित करने को उद्यत है। एन्टीगनी उसी यूरोप की धरती से निकल कर आया नाटक है जहां थियेटर, पुन: जेड़ी क़े शब्दों में कहूं तो 'लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा है, वहां के लोगों की आदत में शुमार है, उनकी एक हसीन शाम का जरूरी हिस्सा है।'
वरिष्ठ रंगकर्मी रणवीर सिंह द्वारा सद्य: अनूदित सोफोक्लीज का नाटकएंटीगनी सोफोक्लीज और ग्रीक थियेटर के साथ मानवीय संघर्ष को चर्चा के केन्द्र में लाने का प्रयास है। एंटीगनी स्त्री पात्र है और वह जन अधिकारों के लिए लड़ने में अपना सर्वस्त्र बलिदान कर देती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्त्री विमर्श, वैयक्तिक अस्तित्व जैसे विचार बिन्दु एंटीगनी के माध्यम से रणवीर सिंह हमारे सामने रखते हैं क्योंकि जनता और सत्ता के बीच टकराहट और उसकी बुलंद आवाज का नाम है एंटीगनी। सत्ता को चुनौती और मनुष्य की जीजिविषा का जीवंत दस्तावेज बन जाता है एंटीगनी। ऐसी सशक्त कथा और शिल्प सोफोक्लीज की थियेटर और कला जगत को अनुपम देन है। कहना न होगा कि ऐसी कृति को हिन्दी पाठकों विशेषकर थियेटर जगत के बीच लाने का रणवीर सिंह का ये कदम इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि महान कृतियों को भाषाओं के दायरे में कैद नहीं रहने दिया जाना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात इस अनूदित नाटक की यह भी है कि अनुवाद की भाषा हिन्दी ना होकर हिन्दुस्तानी यानी हिन्दी उर्दू मिश्रित है जो परिवेश को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने में एक ताकत के रूप में सामने आई है। पुस्तक की भूमिका के रूप में ग्रीक थियेटर और नाटककारों पर लम्बी टिप्पणी ने पुस्तक को विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपादेय बना दिया है।
उम्मीद करनी चाहिए कि एंटीगनी के माध्यम से सोफोक्लीज का ये कथन 'समझ नहीं आता कि समझदार भी समझ से काम नहीं लेते', समझदार लोगों तक पहुंच जाए। ये अनुवाद रणवीर सिंह को थियेटर एकेडमिशियन रूप में पुरजोर तरीके से स्थापित करता है, लिहाजा उनकी जिम्मेदारी बढ़नी तय है। उनके ऐसे कदम निश्चय ही गम्भीर और सार्थक थियेटर के लिए मील का पत्थर बनेगें।
( ये नोट्स दरअसल इन्द्रधनुषइंडिया डॉट ओआरजी पर उपलब्ध मेरी पुस्तक समीक्षा है ,वहाँ से साभार लिया है पर बिना डॉ दुर्गा प्रसाद जी अग्रवाल की इजाजत के ,ये मेरा दुस्साहस ही मानें )
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