सपनो की हसीं दुनिया कहीं न कहीं एक अँधा कुंवा होती है ,
अपने होंसलों और क्षमताओं से बढ़कर सपने भी गुनाह नहीं होते क्या ?
सपनों के इस ब्लैक होल में मुमकिन है कितना कुछ
समा जाये -सुख,चैन, नींद,रिश्ते ..... और भी बहुत कुछ ,
जब हम वक्त के साथ बीते गुजरे पर तन्हाई में नज़र सानी करते हैं तो
हाथों से फिसलती रेत दिखती है ,जो आँखों के कोरों को चुपचाप भिगो जाती है
फिर हम चुपके से अपने आँखों को इसे सुखाते हैं जैसे कोई देख भी ले तो लगे
जैसे आंख मेकुछ में कुछ गिर गया था जिसे निकाल रहे हैं
दरअसल ये करते हुए हम खुद को धोखा दे रहे होते हैं.
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