तो माजरत के साथ फ़िर हाजिर हूँ,सेंतोमे की जगह मेरा सेंट थॉमस चर्च पहुँचना ही अव्वल तो मेरे बेवकूफ बनने की दास्तान है पर मेरा वहाँ पहुचना दिलचस्प इस मायने में है कि एक हादसा पेश आया , चलिए सिलसिलेवार सुनाता हूँ
इग्मोर से लोकल ट्रेन पकड़ने को सेंट थॉमस पहुचाने के लिए सबसे बेहतर बताया गया, चेटपेट से ऑटो लिया यहाँ पहला हादिसा पेश आया ऑटो वाले भाई को अंगरेजी नहीं आती थी और मुझे तमिल का एक अक्षर ..महान भारत की महान विविधता ...गुलज़ार की 'खामोशी' से संजय लीला भंसाली की 'ब्लेक' तक की सारी फिल्मों के अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करते हुए किसी तरह मैं उसे इग्मोर चलने को तैयार कर पाया,हालांकि अभी भी मुझे ख़ुद पे या उस पे विश्वास नहीं था कि मैंने उसे ठीक से समझा दिया याकि उसे ठीक से समझ में आगया ,और वो मुझे वहाँ पहुंचा देगा जहाँ मुझे जाना है...इग्मोरे पहुच कर जान में जान आयी और उसे तीस रुपये देकर मैं स्टेशन में दाखिल हुआ ,पता चला सेंट थॉमस जाने के लिए गिनडी तक ट्रेन है , ५ रुपये का टिकट लिया और सवार हो गया ,दिल्ली की मेट्रो और मुम्बई की लोकल से अलग ,बिल्कुल अलग सा माहौल ...चौथा या पांचवां स्टेशन गिनडी आया ,थोड़ी धक्का मुक्की हुयी ...भीड़ में पसीने की बदबू थी और उसका विशेष दक्षिण भारतीय फ्लेवर ...जिसकी कतई आदत नहीं थी ॥उस से बचकर निकालना एक यातना से निकलने जैसे ही था...उतरा ,चार कदम चला था कि भारतीय रेल के अधिकारिओं ने एक बिना टिकट यात्री तो धर दबोचा ,वो उत्तर भारतीय लग रहा था ॥और वो मैं था ...टिकट प्लीज़ ,सुनते ही पूरी सभ्यता से रुका और अपनी पॉकेट में हाथ डाला देखता हूँ टिकट नहीं है ,वो महोदय बोले ज़रा आराम से कर लें ॥मैंने तुरत फुरत सारी पॉकेट चेक कर डाली , मैंने उसे कहा सर मैंने टिकट ली थी पर मुझे नहीं पता वो कहाँ चली गयी ...उसने कहा आपके पास टिकट होनी चाहिए और नहीं है .. मैंने अति विनम्रता से कहा-'ठीक है टिकट तो नहीं है आप चार्ज कर सकते हैं 'मुझे विनम्रता में भलाई नज़र आयी ...उस व्यक्ति ने कहा अन्दर आ जाईये और ट्रेक के साथ के हाल नुमा कमरे की और इशारा किया.. अन्दर बैठे व्यक्ति ने रसीद बनानी शुरू की तो वह व्यक्ति जो मुझे अन्दर लाया था ने फ़िर मुझे मौका दिया कि मैं इत्मीनान से चेक कर लूँ ... मैंने चेक मेरी किसी पॉकेट में टिकट नहीं थी और अपने वोलेट को भी मैं बहुत तसल्ले से देख चुका था...मैंने सब निकाल एक टेबल नुमा जगह पर रख दिया मेरी हालत देखने लायक थी ऑफिसर ने कहा -लाईये २५६ रुपये ,मैंने लगभग अनसुना किया और कहा- एक मिनट और उस कमरे से बाहर निकला, पहला व्यक्ति मेरे साथ इस तरह चल रहा था जैसे मैं कोई जघन्य अपराधी हूँ ..मैंने देखा टिकट नीचे पडा था ..मुझे चैन आया..उस व्यक्ति ने कहा आप सौभाग्यशाली हैं...अन्दर व्यक्ति ने पूछा आप कहाँ से आए हैं मैंने कहा -इग्मोर॥उसने अगला सवाल दागा ताकि कन्फर्मं कर पाये कि वो मेरी ही टिकट है, मैंने कहा -पाँच रुपये का है ', टिकट दरअसल टिकट दिखाने की हडबडी में मेरी जींस की पिछली पॉकेट से वोलेट निकालते हुए नीचे गिर गया था ,जो वोलेट से चिपक गया था , जवाब आया-'आप जा सकते हैं ',और मुझे छोड़ दिया गया..ऐसे हादसे की कभी कल्पना नहीं की थी ,पर बाद में याद करके बड़ा मज़ा आया
आज इतना ही ....
3 comments:
अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़ना. टिकिट न मिलता तो सोचिये. :) पुरानी घटनाऐं भले ही उस वक्त हैरान कर दें, बाद में आनन्द देती हैं.
tickt bhi sambhal kar nahi rakh sakta. kab sudhrega dushyant?
ramkumar
waah bandhu majaa aa gayaa
sunil,kupwada,jk
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