Thursday, October 25, 2007

फैज़ की नज्म

फैज़ अहमद फैज़ हमारे वक़्त के बहुत बडे और मुत्बर शायर हैं , उनकी नज्में भी उतनी ही खूबसूरत और मानीखेज है जितनी गज़लें , आपसे उनकी एक नज्म शेयर कर रहा हूँ-

वो लोग बहुत खुश किस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया

काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा

फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनो को अधूरा छोड़ दिया

Tuesday, October 23, 2007

बचपन




आज
नीलिमा जी का बचपन पर लिखा ब्लोग पढा ,
बहुत कुछ याद आगया, सबसे ज्यादा बचपन में पापा कैसे थे , माँ का दुलार ,
इसी तरह उन यादों में खोये हुए बहूत दूर निकल आया ,
फिर विदिशा में रहने वाले मित्र शायर आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़ल
याद आयी जिसे आपसे बाँट रहा हूँ-

घर की बुनियादें ,दीवारें, बामो दर थे बाबूजी
सब को बंधे रखने वाला ,खास हुनर थे बाबूजी

अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की साड़ी सज धज सब जेवर थे बाबूजी

तीन मुहल्लों में उन जैसी कद काठी का कोई न था
अच्छे खासे ऊँचे पूरे कद्दावर थे बाबूजी

भीतर से खालिस जज्बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग ,अनूठा अन्बूझा सा इक तेवर थे बाबूजी

कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस,आधा दर थे बाबूजी




Friday, October 19, 2007

एक ग़ज़ल के दो शेर

जगजीत सिंह की गाई एक ग़ज़ल के दो शेर इन दिनों
मेरे जेहन पर तारी हैं, सोचता हूँ , आपसे बाँट लूं ,
ग़ज़ल किस शायर की हैं, अभी ध्यान नही है ,आपको
याद आये तो ज़रूर बताईयेगा

समझते थे मगर फ़िर भी न राखी दूरियां हमने
चरागों को जलाने में जलाली उंगलियाँ हमने

कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती
सजाये तमाम उम्र कागज़ के फूल और पत्तियां हमने



Saturday, October 13, 2007

एक प्यारी सी ग़ज़ल

बशीर बद्र की एक ग़ज़ल आपकी नज़र

यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर न हों
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न
हों

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हों
* सिफ़त: योग्यता

बाजुओं में थकी-थकी, अभी मह्व-ए-ख़्वाब है चाँदनी
उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न
हों

कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ-साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

Thursday, October 11, 2007

ब्लॉगर नीलिमा जी से मुलाक़ात

कल भयंकर वाली ब्लॉगर नीलिमा जी से मिला ,ब्लोग के बारे मे जाना, पूछा, कापी राईट के संकट पे लगभग हम दोनो ही सहमत थे कि रचनात्मक रचनाएं जैसे कविता ,कहानी, ग़ज़ल चोरी हो सकती हैं , उनका दुरूपयोग भी संभव है,इसका कोई ना कोई समाधान निकलना ही चाहिऐ, मैं तो खैर नया ब्लॉगर , आप सब से गुजारिश है इस मुद्दे पे बात होनी चाहिऐ और खुल कर हो जिस से ब्लोग्स की दुनिया की खूबसूरती बढ़े ,उस पर कोई दाग ना नुमायां हो