भारतीय भाषाओं के बीच पुल बनाती फिल्म आखिरकार इस स्तर तक आ जाती है कि भाषाएं गौण हो जाती हैं, यह फिल्म का एक संदेश भी है, एक और संदेश भी है कि लड़कियों को मन से अपना जीवन साथी चुनने की आजादी देश के आजाद होने के ६६ साल बाद भी नहीं है।
मीना लोचनी अलकसुंदर नाम की लड़की की कहानी है- चेन्नई एक्सप्रेस। जिसके पिता दक्षिण भरत के किसी इलाके के डॉन हैं। यूं कहानी लेखक के. सुभाष हैं जो तमिल फिल्म निर्देशक हैं। क्रिकेट से प्यार करने वाले और सचिन की तरह ९९ पर आउट दादाजी की अस्थियां प्रवाहित करने मुम्बई से रामेश्वरम जा रहे उत्तर भारतीय अधेड़ के तमिल लड़की से मिलने, और प्रेम करने की की यात्रा को भी हम चेन्नई एक्सप्रेस कह सकते हैं। राहुल यानी शाहरुख और मीना यानी दीपिका पादुकोण का रासायनिक ताना- बाना इस फिल्म को सुंदर और स्वादिष्ट सांभर-इडली डोसा बना देता है। भारतीय परंपरा की कई परतें फिल्म में दिखती हैं, उत्तर भारतीय गोरे होते हैं, एक मान्यता के अनुसार दक्षिण भारतीय द्रविड़ लोग हैं जो पहले उत्तर में रहते थे, हिंसक थे, बदसूरत थे, और आर्यो ने उन्हें दक्षिण की ओर धकेल दिया था। कबीलाई संस्कृति है कि पिता दो बलवानों या इच्छुक युवाओं में से उसी को बेटी का हाथ सौंपेगा जो लड़ाई में जीतेगा।
भारतीय भाषाओं के बीच पुल बनाती फिल्म आखिरकार इस स्तर तक आ जाती है कि भाषाएं गौण हो जाती हैं, यह फिल्म का एक संदेश भी है, एक और संदेश भी है कि लड़कियों को मन से अपना जीवन साथी चुनने की आजादी देश के आजाद होने के ६६ साल बाद भी नहीं है। दक्षिण की खूबसूरती को कैमरे में समेट के लाने में कमाल हुआ है। स्विटजरलेंड घूमते कुछ फिल्मकारों को यह सुंदर जवाब है। इस लिहाज से फिल्म देखना हमें खुशकिस्मत भारतीय होने का अहसास भी देगा। और शायद यह भी कि हम छुट्टियां मनाने विदेश जाने के सपने पालते हैं, जाते हैं, पर हमने अभी भारत को भी कायदे और करीने से नहीं देखा है। यानी फिल्म दृश्यावलियों का वह तिलिस्म रचती है जो आपको बांधे रखता है, आपको बांधने में दूसरा योगदान युनुस सजावल की लिखी चुस्त और गतिमान पटकथा का भी है और साजिद फरहाद के लिखे संवादों का भी जो माकूल असर पैदा करते हैं। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गीत सुनने लायक हैं, गुनगुनाने लायक भी हैं।
वायुयान से हरियाली के दृश्य बाकमाल लिए हैं, नदी के पुल से गुजरती ट्रेन और बिना स्टेशन के गांव में जब चेन खींचकर रेल रोकी जाती है तो आसपास का वह खूबसूरत कुदरती नजारा आंखों को ठहर के देखने और थम जाने को मजबूर कर देने वाला है। उस वक्त एक झरना दृश्य में जान डाल देता है, वह झरना रोमांच का झरना है, उल्लास का झरना है, हिंदी सिनेमा के भारतीय सिनेमा में क्रमश: तब्दील होते जाने की कोशिश का झरना है। आधी फिल्म तमिल में होते हुए भी आप कहीं फिल्म से कटते नहीं है। भाषा के बंधन का यह तटबंध टूटना और सायास तोडऩा रोहित शेट्टी की सबसे बड़ी ताकत है जिसके लिए इस फिल्म को अलग धरातल पर देखना पड़ेगा और मानना पड़ेगा। दीपिका ने जताया है कि वह मुख्य धारा के स्टार सिनेमा का हिस्सा होते हुए भी अभिनय के मामले में अपनी कई समकालीनों से इक्कीस हैं। एक तमिल लड़की के किरदार में उसकी जीवंतता अनुपमेय है। भारतीय सिनेमा के सौ सालवें वर्ष में हिंदी सिनेमा का यह भाषांतरित रूप खास तरह से रेखांकन मांगता है। यह सितारों का सिनेमा है तो कुछ अतिरंजनाएं भी हैं, पर उन्हें नजर अंदाज किया जा सकता है।
साढ़े तीन स्टार