Monday, November 2, 2009

पाउलो कोएलो- शब्द जब जिंदगियां बदल देते हैं



'पोर्तोबॅलो की जादूगरनी' के शिल्प में खास बात यह है कि नायिका एथिना के जीवन प्रसंगों को उससे जुड़े लोगों के मुंह से क्रमश: कहलवाया है


हार्पर हिंदी से पाउलो कोएलो या पॉलो क्वेल्हो की हिंदी में तीसरी किताब आई हैं- 'पोर्तोबॅलो की जादूगरनी'। वो मुझे हमारे समय का दैवीय लेखक लगता है। अपने एक इंजीनियर मित्र के मुंह से डेढ दशक पहले अयन रैंड के साथ पाउलो का नाम, जिस किताब के नाम से उसे दुनिया जानती है, उसी के हवाले से सुना था, यानी 'अलकेमिस्ट'। तब तक उसका हिंदी अनुवाद कमलेश्वर जी ने नहीं किया था, मैं भी उस किताब से चमत्कृत हुए बिना नहीं रह सका। फिर 'ब्रीडा' पढ़ी, जो पाउलो की पहली लोकप्रिय किताब थी, इस बारे में एक दिलचस्प बात यह कि अलकेमिस्ट के पहले संस्करण की केवल 900 प्रतियां बिकीं और प्रकाशक ने दूसरा संस्करण छापने से मना कर दिया था, फिर ब्रीडा की लोकप्रियता के कारण पाठकों-आलोचकों में वो यकायक चर्चा में आ गए थे और जिसके कारण लोगों का ध्यान 'अलकेमिस्ट' की ओर गया था। जब कमलेश्वर जी ने मुझे बताया था कि 'तुम्हारी' 'अलकेमिस्ट' का अनुवाद कर दिया है तो बड़ा सुखद लगा था। मृत्यु से पूर्व वे 'द जाहिर' का भी अनुवाद हिंदी संसार को सौंप गए थे। लेखक के नाम की जो वर्तनी 'पाउलो कोएलो' कमलेश्वर ने इस्तेमाल की, वह ही मुझे उपयुक्त लगती है। हिंदी में उसके नाम की वर्तनी भी अलग-अलग सामने आती है। हार्पर ने ताजा किताब में पॉलो क्वेल्हो इस्तेमाल किया है।

खैर, 'पोर्तोबॅलो की जादूगरनी' के शिल्प में खास बात यह है कि नायिका एथिना के जीवन प्रसंगों को उससे जुड़े लोगों के मुंह से क्रमश: कहलवाया है, जैसे- पत्रकार हैरन रायन, अभिनेत्री एंड्रिया मैक्केन, डॉक्टर एॅडा, न्यूम्रॉलॉजिस्ट लॅल्ला तैनब आदि, यह अलग किस्म की किस्सागोई अद्भुत बन पड़ी है। उनके लेखन की एक ताकत है और किसी हद तक कमजोरी भी कि उसके मुख्य पात्र आध्यात्मिक भूख के मारे होते हैं, बतौर उदाहरण- 'अलकेमिस्ट' का नायक गडरिया, 'ब्रीडा' की नायिका ब्रीडा, 'जाहिर' की नायिका एस्थर और 'पोर्तोबॅलो की जादूगरनी' की नायिका एथिना। इसीलिए लेखन और विचार की दुनिया के सबसे आकर्षक और तार्किक माने गए माक्र्सवाद की जगजाहिर धर्म- अध्यात्म से दूरी की स्पष्ट अस्वीकारोक्ति हमें पाउलो में मिलती है और चाहे उसमें ईसाई मिथकों और विचारों की प्रतिच्छाया ही क्यों ना हो, पाउलो की अपार लोकप्रियता, इस बात को सिद्ध ना भी करे तो कम से कम प्रबल संकेत क्या नहीं देती कि आध्यात्मिक भूख मनुष्य की मूल प्रवृति या सनातन भूख है?

पोर्तोबॅलो का अनुवाद कमलेश्वर जैसा सहज, सरल तो नहीं ही बन पाया है पर प्रकाशक को सलाह है कि जगत प्रसिद्ध पाउलो की रचना के साथ न्याय होना चाहिए, यह पाउलो के पाठकों का भी हक है, और उम्मीद करें कि अभी पाउलो की पहली चर्चित रचना ब्रीडा हिंदी में नहीं आई है, हिंदी पाठकों का यह भी तो वाजिब हक है। आखिर में, छोटी-सी पर खास और दिलचस्प बात यह कि बेस्टसेलर अंग्रेजी लेखकों के समकक्ष बिक्री और लोकप्रियता वाले पाउलो अंग्रेजी लेखक नहीं है, वे ब्राजील में रहकर पुर्तगाली में लिखते हैं।