तारीख ही थी कैलेंडर की
मानवता के सुदीर्घ इतिहास में
कभी पूर्व संध्या भारतीय गणतंत्र की
कुछ खास नहीं किसी व्यक्तिगत इतिहास में
लिखा जाना था कोई मौखिक शपथ पत्र
आयु जिसकी मानकर अनंत
संधिकाल था वह दो दिवसों का
और हो गई संधि, कोई संबंध नहीं द्विपक्षीय !
और तदंतर पर्चियां उडनी थी, उडने थे परखच्चे
उस अस्थाई भावनात्मक जुडाव की
क्योंकि 'भावनाएं स्थाई नहीं होती' पूर्व कथन था यही तो !
व्यर्थ इस भाव को तदापि
स्वीकार लेना स्थाई
और जोड लेना कोई स्थाई साथ।
विश्वास और प्रतिबद्धता का आदर्श और यथेष्टतम रूप भी निष्फल होना था क्या ?
मूर्खता चरम
नासमझी परम
और लहजा नरम नरम !