Tuesday, December 4, 2007

एक अर्ज़

तसलीमा जी से हुई मुलाक़ात आपसे पूरी नहीं बाँट पाया हूँ,माफी चाहता हूँ क्या करूं कुछ तो अखबारी नोकरी और ऊपर से आतीहुई सर्दी, तबियत थोडी नासाज़ है,जल्द बाँट रहा हूँ ,मुझे पता है कुछ दोस्त बेसब्री से इंतज़ार में हैं जैसे भाई गौरव और श्वेत जी,पुनः क्षमा याचना के साथ प्यार बनाए रखें

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