Tuesday, September 2, 2008

अलविदा कैसे कहें आउटलुक हिन्दी को...



आउट लुक का सितम्बर अंक आ गया है...गौर करें सितम्बर अंक..नज़र कई देर ठिठकी रही सितम्बर पर..समझ गए होंगे मैं क्या कह रहा हूँ..बस इतना सा कि आउट लुक हिन्दी अब साप्ताहिक नहीं रही मासिक कर दी गयी है....आलोक मेहता जी के नयी दुनिया चले जाने के बाद इस परिवर्तन की उम्मीद नहीं थे..हालाँकि आशीष ने अपने ब्लॉग हल्ला पर ऐसा संकेत दिया था..मुझे अफवाह लगी थी ..अपने भीतर एक जलजला उठते पाया ॥


साहित्यिक पत्रिकाएं न चले ये किसी हद तक समझ में आता है॥मैंने भी एक साहित्यिक त्रैमासिकी के चार अंक निकाले हैं तो कुछ ख़बर है..किन स्थितियों का सामना करना पड़ता है..मसलन लेखक पत्रिका और सम्पादक को अभूतपूर्व और महान बतादेंगे पर एक प्रति खरीद कर पढने में तकलीफ होती है वो तो फ्री में ही मिलनी चाहिए..अंक ना आए जिसमे उनकी रचना शामिल है तो पचास बार फ़ोन करलेंगे पर अंक ना आने की मजबूरी न समझेंगे ना जान ने की चेष्टा करेंगे.. हंस कथादेश की उपस्थिति आश्चर्यजनक है ही॥अब तो परिकथा भी उन्हें टक्कर देने लगी है चाहे दोमाही है फ़िर भी..खुदा करे ये सिलसिला कायम रहे..


फ़िर साप्ताहिक की बात पर लोटें ...हिन्दीकी साप्ताहिकी चलना दूभर हो गया है क्या ..दिनमान धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान सहारा समय के बाद अब आउट लुक भी...अपनी आँखों के सामने जैसे एक पत्रिका ..आउटलुक यानी समग्र दृष्टिकोण को मरते देख रहा हूँ...


पत्रकारिता के पेशे में हूँ..और जब आउटलुक शुरू हुई थी शायद अक्टूबर २००२ की बात है ..उस वक्त से इंडिया टुडे को खरीद कर नहीं पढा ...छ साल में ये दिन आ गया ..जबकि हिन्दी बुद्धिजीवियों में चर्चा रही है मैगजीन की ..खैर बहुत बार दोहराए जाने वाले बशीर के शेर को फ़िर गायें..कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी..वरना यूँ कोई बेवफा नहीं होता...

एक सवाल ज़रूर जेहन में उठता है कि इंडिया टुडे तकरीबन १०पेजों के साथ क्षेत्रीय संस्करण निकाल पा रहे हैं !!!!

आउटलुक के अवसान की इस पूर्व संध्या पर क्या कहूं ..मन भारी है

दुआ करें कि ऐसा ना हो ..आमीन..आउटलुक फ़िर से साप्ताहिक हो जाए..

14 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

aapke dard ko samjh sakta hun. main bhi chhota sa patrakaar hun aur outlook hindi ka niymit pathak bhi. Bangalore se dainik nikalta hun. mujhe maloom hai ki aaj ke samay men hindi patra patrika nikalna kitna kathin hai, parantu ye pareshaniyan chhote akhbaron aur patrikaon ke liye hoti hain, outlook to bade group ki patrika hai. bahar haal hindi ke pathak ek achhi patrika har week padhne se vanchit ho jayenge, dukhad hai.

डॉ .अनुराग said...

मेरा मानना है की साप्ताहिक होने से quality पर असर पड़ता है...ये मगज़ीन के लिए अच्छा है.....

नीरज गोस्वामी said...

अपनी दुआओं के साथ मेरा सुर भी मिला लें...
नीरज

सतीश पंचम said...

जी हां, ज्यादा संस्करण आयें तो क्वालिटी पर फर्क पडता ही है। अनुराग की बात से सहमत हूं।

सतीश पंचम said...

जी हां, ज्यादा संस्करण आयें तो क्वालिटी पर फर्क पडता ही है। अनुराग की बात से सहमत हूं।

Pawan Kumar said...

आउट लुक मैगजीन के विषय में नवीन जानकारी दी. जुडाव खतरनाक एहसास है ...जब तक साथ रहता है तो पता नही चलता सिलसिला ज्यों ही टूटता है तो कमी का एहसास होता है.आउट लुक मैगजीन का सप्ताह से मासिक हो जाना कुछ ऐसा ही है.वैसे अनुराग की बात भी अपनी जगह ठीक है मासिक में शायद क्वालिटी मेंटेन कर सकना आसान है.आपको अच्छे लेख के लिए धन्यवाद

DUSHYANT said...

शुक्रिया दोस्तों..शिरकत के लिए.
.इस सहमत नहीं कि आउटलुक के मासिक होने से गुणवत्ता बरकरार या कायम रह पायेगी ..समाचार पत्रिका क्या मासिक सम्भव है जब खबरिया चेनलों की उपस्थिति में सुबह अखबार तक जब हमें बासी सा नज़र आता है..अखबार ज़्यादा फीचरिस्तिक हो रहे हैं..और सुपर स्पेशलिटी पत्रकारिता युग में मासिक पत्रिका खबरी कैसे सम्भव है ,मेरी तो समझ से परे है ..विचार या अन्यतो भले ही सम्भव मान लें .खैर अपना अपना सोच है ...

varsha said...

yah achcha nahin he. kya ek dainik akhbar ka saptahik ho jana achcha he? ek mag ka saptahik se pakshik ho jana shubh sanket nahin vah bhi us dour me jab sab kuch badi teji se badalta hua ho?

Anonymous said...

aaj kya khabar hai kya nahi yeh depend karta hai us per the one who is presenting, phir lekh weekly likhe jaye ya monthly, quality dono me maintain ki ja sakti hai zaroorat usko banaye rakhne bahr ki hai. dekhte hai is badlav se kitna parivartan haota hai.

श्रद्धा जैन said...

mere liye to sabse buri khabre yahi hai ki main kuch nahi padh paa rahi
koi magzine nahi koi patrika nahi
kassh kuch yaha bhi nikalta hota

kitna kuch kho rahi hoon uska bayaan sambhav nahi hai

Dileepraaj Nagpal said...

kahna to padega janab...
sir matter ki thodi leading thik kijiye. padhne m dikkat aati hai

Dileepraaj Nagpal said...

sir matter ki leading ka kuch kijiye. padhne m kaafi dikkat hui.

Dileepraaj Nagpal said...

matter ki leading ka kuch kijiye sir...padhne m dikkat hoti hai

surjeet said...

chintayen jaij hain. kisi acchi magazine ka avsan jaisa hi hai yeh. aapne acchi bahas chalai. shukria.