Monday, July 27, 2009
कलम को सलाम कीजिए
रामचंद्र गुहा का प्रकाशक पेंग्विन से करार हुआ है जिसके तहत वे इस साल उनके लिए 97 लाख रुपये में सात किताबें लिखेंगे, यह करार भारतीय लेखन जगत में एक इतिहास का रचा जाना है तो उचित लेखकीय मानदेय का उदाहरण भी।
एक बड़ी खबर यह है कि प्रसिद्ध इतिहासकार और स्तंभकार रामचंद्र गुहा का एक प्रकाशक से करार हुआ है जिसके तहत वे इस साल उनके लिए 97 लाख रुपये में सात किताबें लिखेंगे। वे गद्यकार है, लिहाजा ये किताबें नॉन फिक्शन यानी कथेतर होंगी। उनकी पिछली किताब इंडिया आफ्टर गांधी भारत की कथेतर बेस्टसेलर है। गुणवत्ता में मिथकीय प्रतिमान स्थापित करने वाले लेखक का यह करार भारतीय लेखन जगत में एक इतिहास का रचा जाना है तो उचित लेखकीय मानदेय का उदाहरण भी।दरअसल भारत में लेखन को कला तो माना गया पर उसे व्यवसाय के तौर पर प्राय: हीन दृष्टि से देखा जाता रहा है। इसीलिए लेखन को पारिश्रमिक से भी नहीं जोड़ा जाता। मै मानता हूं कि पैसे के लिए ना लिख जाए पर जो लिखें, उसका उचित लेखकीय मानदेय लेखक का हक है। ज्ञात हो कि आज राजेंद्र यादव और नरेंद्र कोहली हिंदी के सर्वाधिक रॉयल्टी पाने वाले लेखक हैं जबकि निर्मल वर्मा अपनी मृत्यु से ठीक पूर्व भी सालाना रॉयल्टी के रूप में केवल एक लाख रुपये के आसपास प्राप्त कर रहे थे। कुल मिलाकर लेखक को उचित मानदेय ना मिल पाने में प्रकाशकीय खोट भी कम नहीं है। पर लेखन में व्यवसायिकता को लाने की जरूरत और संभावना को लेखक प्रकाशक दोनों की आपसी समझ से तय कर सकते हैं। यहां संदर्भश: बताना चाहिए कि राजस्थान हिंदी गं्रथ अकादमी द्वारा स्थापित रॉयल्टी के पारदर्शी मॉडल को हिंदी सृजनात्मक लेखन में भी संभव बनाने की जरूरत है। ये संयोग भर नहीं है कि उपरोक्त करार करने वाले प्रकाशक पेंगुइन ने ही हिंदी के उदय प्रकाश से एडवांस रॉयल्टी पर उपन्यास लिखने का पहला करार किया है जबकि हिंदी के स्थापित नामचीन प्रकाशक नहीं कर पाये, हालांकि राजकमल प्रकाशन ने पिछले दिनों एक उत्साहजनक योजना अपनी स्थापना के साठ वर्ष पूरे वर्ष होने पर घोषित की है। जिसमें साठ पांडुलिपियों को रॉयल्टी के साथ साठ लाख
रुपये दिए जाएंगे। अब तक मुहावरे में कहा जाता है कि अंगे्रजी में लिखते हो तो रॉयल्टी की बात करो, हिंदी में प्रकाशक को बिना कुछ दिए छप जाओ तो गौरवान्वित होना चाहिए, पंजाबी, उर्दू और राजस्थानी में प्रकाशक को धन देकर भी छप जाओ तो गनीमत मानिए। पर अब माहौल बदलने लगा है जबकि अंगे्रजी के बड़े और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक हिंदी में आ रहे हैं। तो परंपरागत भारतीय प्रकाशक भी बदलेंगे, उम्मीद करनी चाहिए।
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4 comments:
अच्छी खबर सुनाई आपने
wah guru wah! khabar ke bahane
best words! you are highly informed! congrats! keep rocking.
dushyant ji,fir chakit aur prabhavit kiya hai apne. bahut sundar bhasha me likhte hain ap.
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