अपने बनाए एक कच्चे से पर सच्चे से रेखाचित्र को बांट रहा हूं-
लगे हाथ, पंजाब के मशहूर शाइर जाहिद अबरोल साहब की नज्म भी मुलाहिजा फरमाइए जो अंबाला में रहने वाले मेरे दोस्त शिवनंदन बाली ने साढे तीन साल पहले, मेरे ब्रेक-अप के बाद सुनाई थी-
जब मैं नन्हा सा बच्चा था
मेरी मां ने इक दिन मुझसे
एक पहेली पूछी थी-
एक डाल पे पांच कबूतर
एक शिकारी ने गोली से
एक कबूतर मार गिराया
बोलो कितने बचे कबूतर!
मैंने नन्हीं सी उंगली पर
गिनकर चार कहा था लेकिन
मो ने मुझको समझाया था
एक कबूतर के मरने से
बाकी के सब भाग गए हैं
आज तुम जीवन के वीराने पथ पर
मुझे अकेला छोड चले हो,
एक खुशी दम तोड रही है
बाकी खुशियों का क्या होगा!
वही पहेली आज मैं तुमसे पूछ रहा हूं -
जो मेरी मां ने मुझसे पूछी थी,
एक डाल पे पांच कबूतर
एक शिकारी ने गोली से
एक कबूतर मार गिराया,
एक खुशी दम तोड रही है
बाकी खुशियों का क्या होगा!
2 comments:
भाई, चित्र बहुत ही शानदार है। चित्रकला जारी रखो भाई, भविष्य वहां भी है। अतीत से अब मुक्त हो जाओ, जो चला गया उसे भूल जा। शुभकामनाएं।
Ji bahot hi acchi anukriti.
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